उम्र इतनी रवां हुई कैसे
दुश्मने - ख़ानुमां हुई कैसे
आप गर हमपे मेहरबान न थे
रात इतनी जवां हुई कैसे
उनपे मख़्सूस थी गली दिल की
वो: रहे - कारवां हुई कैसे
क्या ख़बर होश कब गंवा बैठे
ये: अदा बदगुमां हुई कैसे
हम अगर हमनज़र नहीं हैं तो
ख़ामुशी ये: ज़ुबां हुई कैसे
उसपे दारोमदार था दिल का
याद दर्दे - निहाँ हुई कैसे
वक़्त पे पांव कब रखा हमने
मौत फिर मेहरबां हुई कैसे ? !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रवां: गतिवान; दुश्मने - ख़ानुमां: घर-गृहस्थी की शत्रु; मख़्सूस: विशिष्ट, आरक्षित; रहे-कारवां: यात्री-समूह का मार्ग; बदगुमां:भ्रमित; हमनज़र: सम-दृष्टि; ख़ामुशी: चुप्पी; दारोमदार: उत्तरदायित्व; दर्दे - निहाँ: छुपी हुई पीड़ा।
दुश्मने - ख़ानुमां हुई कैसे
आप गर हमपे मेहरबान न थे
रात इतनी जवां हुई कैसे
उनपे मख़्सूस थी गली दिल की
वो: रहे - कारवां हुई कैसे
क्या ख़बर होश कब गंवा बैठे
ये: अदा बदगुमां हुई कैसे
हम अगर हमनज़र नहीं हैं तो
ख़ामुशी ये: ज़ुबां हुई कैसे
उसपे दारोमदार था दिल का
याद दर्दे - निहाँ हुई कैसे
वक़्त पे पांव कब रखा हमने
मौत फिर मेहरबां हुई कैसे ? !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रवां: गतिवान; दुश्मने - ख़ानुमां: घर-गृहस्थी की शत्रु; मख़्सूस: विशिष्ट, आरक्षित; रहे-कारवां: यात्री-समूह का मार्ग; बदगुमां:भ्रमित; हमनज़र: सम-दृष्टि; ख़ामुशी: चुप्पी; दारोमदार: उत्तरदायित्व; दर्दे - निहाँ: छुपी हुई पीड़ा।
अभी मशरूफ हूँ काफी, कभी फुर्सत में सोचूंगा,
जवाब देंहटाएंकि तुझे याद रखने में, मैं क्या-क्या भूल जाता हूँ ji hai to benaam par dil ki nigaho se naam to aap jaan hi lijiyega...........mere ash`yaar tere hatho ki lekhni se zindagi paa jatae hai.
खूबसूरत अश’आर
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार१६ /७ /१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
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