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शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

दर्दे-दिल की दवा

आज   बादे-सबा   चली  आई
लब  पे  मेरे  दुआ  चली  आई

नाम:बर  की  ख़ुशी  से  ज़ाहिर  है
दर्दे-दिल  की  दवा  चली  आई

कोसते  ही  ज़रा  मुअज़्ज़िन  को
मैकदे    से     सदा     चली  आई

ज़िक्र    मेरा    हुआ    हरीफ़ों  में
उनके  रुख़  पे  हिना  चली  आई

याद  जब  भी  किया  तहे-दिल  से
उनके  दिल  में  वफ़ा  चली  आई

अह्द  हमने  किया  मुहब्बत  का
आसमां  से  रज़ा  चली  आई

ख़ुल्द  के  ख़्वाब  में  महव  थे  हम
पास  हंस  के  क़ज़ा  चली  आई !

                                              ( 2013 )

                                        -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: बादे-सबा: प्रातः की शीतल समीर; नाम:बर: सन्देश लाने वाला; मुअज़्ज़िन: अज़ान देने वाला; मैकदा: मदिरालय; सदा: स्वर; हरीफ़: प्रतिद्वंद्वी; रुख़: चेहरा; हिना: मेंहदी का लाल रंग, लाली; तहे-दिल: हृदय की गहराई; वफ़ा: निर्वाह की इच्छा; अह्द: संकल्प; रज़ा: स्वीकृति; ख़ुल्द: स्वर्ग;  महव: खोए हुए;  क़ज़ा: मृत्यु। 

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