वो: हमें ज़ेहन में लाते तो कोई बात भी थी
अपने अरमान जगाते तो कोई बात भी थी
तुमने ख़ुशियों को तहे-दिल से निभाया हर दम
शान से ग़म को निभाते तो कोई बात भी थी
ऐश-ओ-इशरत की हर इक चीज़ चाहने वालों
घर को ईमां से सजाते तो कोई बात भी थी
क्या मिला सोहबत-ए-कमज़र्फ़ से वही जानें
दायरा अपना बढ़ाते तो कोई बात भी थी
दाग़-ए-सदमात पे हंसते हैं ज़माने वाले
ख़ुद को फ़ौलाद बनाते तो कोई बात भी थी
तर्क-ए-उल्फ़त में टूट जाना तो रवायत है
कुछ नया करके दिखाते तो कोई बात भी थी
ज़ीस्त की रस्साकशी हारते रहे हर दम
इक सिरा हमको थमाते तो कोई बात भी थी !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ेहन: मस्तिष्क, विचार; तहे-दिल: हृदय की गहराई;ऐश-ओ-इशरत: विलासिता और समृद्धि; ईमां: आस्था; सोहबत-ए-कमज़र्फ़: ओछे व्यक्ति की संगति; दाग़-ए-सदमात : दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के चिह्न; तर्क-ए-उल्फ़त: प्रेम-भंग; रवायत: परंपरा;ज़ीस्त: जीवन।
अपने अरमान जगाते तो कोई बात भी थी
तुमने ख़ुशियों को तहे-दिल से निभाया हर दम
शान से ग़म को निभाते तो कोई बात भी थी
ऐश-ओ-इशरत की हर इक चीज़ चाहने वालों
घर को ईमां से सजाते तो कोई बात भी थी
क्या मिला सोहबत-ए-कमज़र्फ़ से वही जानें
दायरा अपना बढ़ाते तो कोई बात भी थी
दाग़-ए-सदमात पे हंसते हैं ज़माने वाले
ख़ुद को फ़ौलाद बनाते तो कोई बात भी थी
तर्क-ए-उल्फ़त में टूट जाना तो रवायत है
कुछ नया करके दिखाते तो कोई बात भी थी
ज़ीस्त की रस्साकशी हारते रहे हर दम
इक सिरा हमको थमाते तो कोई बात भी थी !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ेहन: मस्तिष्क, विचार; तहे-दिल: हृदय की गहराई;ऐश-ओ-इशरत: विलासिता और समृद्धि; ईमां: आस्था; सोहबत-ए-कमज़र्फ़: ओछे व्यक्ति की संगति; दाग़-ए-सदमात : दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के चिह्न; तर्क-ए-उल्फ़त: प्रेम-भंग; रवायत: परंपरा;ज़ीस्त: जीवन।
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