जब से वो: दर्दे-दिल के ख़रीदार हो गए
लगता है हमें, हम तो गुनहगार हो गए
बैठे हैं घर में उनकी तमन्ना किए हुए
शे'रो-सुख़न के रास्ते दुश्वार हो गए
बैठे-बिठाए इश्क़ का आज़ार लग गया
सारे जतन तबीब के बेकार हो गए
ईमां लुटा के उनपे ये: ईनाम मिला है
दोनों जहां हमारे तलबगार हो गए
रहबर बताएं कौन है हाफ़िज़ अवाम का
तकिया था जिनपे लोग वो: बदकार हो गए
कुछ सिलसिल:-ए-रिज़्क़ हो कुछ ज़रिए-माश हो
चर्चे हमारे यूं तो बे-शुमार हो गए
वो: आ गए हैं सफ़ में हमारी कहे बग़ैर
मौसम शहर के आज ख़ुशगवार हो गए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तमन्ना: अभिलाषा; शे'रो-सुख़न: काव्य और अभिव्यक्ति; दुश्वार: दुर्गम; आज़ार: रोग; जतन: प्रयास; तबीब: हकीम, उपचारक; ईमां: आस्था; दोनों जहां: इहलोक-परलोक; तलबगार: अभिलाषी; रहबर: नेता, मार्गदर्शक; तकिया: विश्वास; बदकार: कुकर्मी; सिलसिल:-ए-रिज़्क़: रोज़ी-रोटी की व्यवस्था; ज़रिए-माश: अर्थ-प्राप्ति का साधन; चर्चे: चर्चाएं, प्रसिद्धि; बे-शुमार: अनगिनत; सफ़: पंक्ति, (यहां आशय नमाज़ की पंक्ति से); ख़ुशगवार: प्रसन्नता-दायक।
लगता है हमें, हम तो गुनहगार हो गए
बैठे हैं घर में उनकी तमन्ना किए हुए
शे'रो-सुख़न के रास्ते दुश्वार हो गए
बैठे-बिठाए इश्क़ का आज़ार लग गया
सारे जतन तबीब के बेकार हो गए
ईमां लुटा के उनपे ये: ईनाम मिला है
दोनों जहां हमारे तलबगार हो गए
रहबर बताएं कौन है हाफ़िज़ अवाम का
तकिया था जिनपे लोग वो: बदकार हो गए
कुछ सिलसिल:-ए-रिज़्क़ हो कुछ ज़रिए-माश हो
चर्चे हमारे यूं तो बे-शुमार हो गए
वो: आ गए हैं सफ़ में हमारी कहे बग़ैर
मौसम शहर के आज ख़ुशगवार हो गए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तमन्ना: अभिलाषा; शे'रो-सुख़न: काव्य और अभिव्यक्ति; दुश्वार: दुर्गम; आज़ार: रोग; जतन: प्रयास; तबीब: हकीम, उपचारक; ईमां: आस्था; दोनों जहां: इहलोक-परलोक; तलबगार: अभिलाषी; रहबर: नेता, मार्गदर्शक; तकिया: विश्वास; बदकार: कुकर्मी; सिलसिल:-ए-रिज़्क़: रोज़ी-रोटी की व्यवस्था; ज़रिए-माश: अर्थ-प्राप्ति का साधन; चर्चे: चर्चाएं, प्रसिद्धि; बे-शुमार: अनगिनत; सफ़: पंक्ति, (यहां आशय नमाज़ की पंक्ति से); ख़ुशगवार: प्रसन्नता-दायक।
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