ग़म किसी का हो मेरे दिल में ठहर जाता है
कुछ न कुछ रोज़ मेरे जिस्म में मर जाता है
इतना हस्सास कर दिया है हवादिस ने मुझे
आईना देखता है मुझको तो डर जाता है
ख़्वाब देता तो है अल्लाह मेरी आंखों को
क्यूं मगर टूट के मिट्टी में बिखर जाता है
तेरी तकलीफ़ का इल्हाम-सा होता है मुझे
और हर दर्द मेरे दिल में उतर जाता है
हैं मुक़ाबिल मेरा घर और शिवाला तेरा
देखते हैं के: मेरा यार किधर जाता है
जब भी तारीकियों में नाम-ए -ख़ुदा लेता हूं
देखते देखते घर नूर से भर जाता है !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
कुछ न कुछ रोज़ मेरे जिस्म में मर जाता है
इतना हस्सास कर दिया है हवादिस ने मुझे
आईना देखता है मुझको तो डर जाता है
ख़्वाब देता तो है अल्लाह मेरी आंखों को
क्यूं मगर टूट के मिट्टी में बिखर जाता है
तेरी तकलीफ़ का इल्हाम-सा होता है मुझे
और हर दर्द मेरे दिल में उतर जाता है
हैं मुक़ाबिल मेरा घर और शिवाला तेरा
देखते हैं के: मेरा यार किधर जाता है
जब भी तारीकियों में नाम-ए -ख़ुदा लेता हूं
देखते देखते घर नूर से भर जाता है !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
GHAM KISI KA HO MERE DIL ME UTAR JATA HE, GHAM HE AURO KE PAR DIL MERA BHAR JATA HE........ACHCHHI GHAZAL HAI.....J.N.MISHRA
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