हो रहे उनसे जुदाई हो रहे
फिर मेरी दुश्मन ख़ुदाई हो रहे
और भी हैं काम अपनी जान को
क़ैदे-उल्फ़त से रिहाई हो रहे
इश्क़ में चैनो-सुकूं मुमकिन नहीं
दर्दो-ग़म से आशनाई हो रहे
दिल का जब नामो-निशां ही मिट चुका
ख़ूब खुल कर बेवफ़ाई हो रहे
है मुबारक मश्ग़ला-ए-रोज़गार
आशिक़ों की रहनुमांई हो रहे
मुन्तज़िर हैं आएं वो: तो जान दें
रुख़्सती में मुंह-दिखाई हो रहे
आ रहे हैं दफ़्न को हम जल्द ही
ग़ोर की अब तो सफ़ाई हो रहे
क्या दिया हमको इबादत ने सिला
आसमां से भी बुराई हो रहे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
फिर मेरी दुश्मन ख़ुदाई हो रहे
और भी हैं काम अपनी जान को
क़ैदे-उल्फ़त से रिहाई हो रहे
इश्क़ में चैनो-सुकूं मुमकिन नहीं
दर्दो-ग़म से आशनाई हो रहे
दिल का जब नामो-निशां ही मिट चुका
ख़ूब खुल कर बेवफ़ाई हो रहे
है मुबारक मश्ग़ला-ए-रोज़गार
आशिक़ों की रहनुमांई हो रहे
मुन्तज़िर हैं आएं वो: तो जान दें
रुख़्सती में मुंह-दिखाई हो रहे
आ रहे हैं दफ़्न को हम जल्द ही
ग़ोर की अब तो सफ़ाई हो रहे
क्या दिया हमको इबादत ने सिला
आसमां से भी बुराई हो रहे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा सोमवार [01-07-2013] को
जवाब देंहटाएंचर्चामंच 1293 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
बहुत सुदंर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर