उसके क़िस्से में मेरा नाम तक नहीं आता
दोस्त कहता है मुझे बाम तक नहीं आता
तेरी वफ़ा की हक़ीक़त बता न दूं सबको
वस्ल तो दूर है पैग़ाम तक नहीं आता
सोह्बते-शैख़ ने आदत मेरी बदल डाली
हाथ उठता तो है पर जाम तक नहीं आता
बोल क्या नाम दूं क़ातिल तेरी नफ़ासत को
क़त्ल करता है तो इल्ज़ाम तक नहीं आता
ये: मेरा शौक़-ए-सुख़न मर्ज़ ला-इलाज हुआ
सोह्बते-हुस्न में आराम तक नहीं आता
उफ़ ! तेरा इंतज़ार है के: उम्र-क़ैद मेरी
घर से चलता है सुबह शाम तक नहीं आता !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बाम: झरोखा; वफ़ा: निर्वाह; हक़ीक़त यथार्थ;वस्ल: मिलन; पैग़ाम: सन्देश; सोह्बते-शैख़: अति-धार्मिक व्यक्ति का साथ;
जाम: मदिरा-पात्र; नफ़ासत: सुगढ़ता; इल्ज़ाम: आरोप; शौक़-ए-सुख़न: सृजन की रुचि; मर्ज़: रोग; ला-इलाज: असाध्य;
सोह्बते-हुस्न: सौंदर्य का साथ।
दोस्त कहता है मुझे बाम तक नहीं आता
तेरी वफ़ा की हक़ीक़त बता न दूं सबको
वस्ल तो दूर है पैग़ाम तक नहीं आता
सोह्बते-शैख़ ने आदत मेरी बदल डाली
हाथ उठता तो है पर जाम तक नहीं आता
बोल क्या नाम दूं क़ातिल तेरी नफ़ासत को
क़त्ल करता है तो इल्ज़ाम तक नहीं आता
ये: मेरा शौक़-ए-सुख़न मर्ज़ ला-इलाज हुआ
सोह्बते-हुस्न में आराम तक नहीं आता
उफ़ ! तेरा इंतज़ार है के: उम्र-क़ैद मेरी
घर से चलता है सुबह शाम तक नहीं आता !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बाम: झरोखा; वफ़ा: निर्वाह; हक़ीक़त यथार्थ;वस्ल: मिलन; पैग़ाम: सन्देश; सोह्बते-शैख़: अति-धार्मिक व्यक्ति का साथ;
जाम: मदिरा-पात्र; नफ़ासत: सुगढ़ता; इल्ज़ाम: आरोप; शौक़-ए-सुख़न: सृजन की रुचि; मर्ज़: रोग; ला-इलाज: असाध्य;
सोह्बते-हुस्न: सौंदर्य का साथ।
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