राज़ की बात थी महफ़िल में किस तरह आई
ये: ख़ुराफ़ात तेरे दिल में किस तरह आई
इत्र-ओ-गुल पेश कर रहा है ख़ैर-मक़दम में
आज ये: आगही ग़ाफ़िल में किस तरह आई
किसी तरह भी वो: राज़ी नहीं दवा के लिए
ये: तड़प ये: अना बिस्मिल में किस तरह आई
दौड़ती आ रही है मुझसे लिपटने के लिए
इतनी दीवानगी मंज़िल में किस तरह आई
सजा रहा है वो: मक़्तल को मेरी आमद पे
ये: नफ़ासत मेरे क़ातिल में किस तरह आई
दस्तबस्ता खड़े हैं सब के सब वुज़ू बनाए हुए
ऐसी पाकीज़गी महफ़िल में किस तरह आई
तू तो कहता था मेरा नाम भी लेगा न कभी
तो मेरी ख़ू तेरी ग़ज़ल में किस तरह आई ?!
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुराफ़ात: उद्दंडता; इत्र-ओ-गुल: सुगंध और पुष्प; ख़ैर-मक़दम: अगवानी, स्वागत; आगही: अग्रिम समझ; ग़ाफ़िल: निश्चेत, असावधान, अन्यमनस्क; अना: अति-स्वाभिमान, अकड़; बिस्मिल: घायल; मक़्तल: वध-गृह; आमद: आगमन; नफ़ासत: सौंदर्य-बोध; क़ातिल: हत्यारा; दस्तबस्ता: हाथ बांध कर; वुज़ू: नमाज़ पढ़ने के पूर्व देह-शुद्धि; पाकीज़गी: पवित्रता; ख़ू: विशिष्टता।
ये: ख़ुराफ़ात तेरे दिल में किस तरह आई
इत्र-ओ-गुल पेश कर रहा है ख़ैर-मक़दम में
आज ये: आगही ग़ाफ़िल में किस तरह आई
किसी तरह भी वो: राज़ी नहीं दवा के लिए
ये: तड़प ये: अना बिस्मिल में किस तरह आई
दौड़ती आ रही है मुझसे लिपटने के लिए
इतनी दीवानगी मंज़िल में किस तरह आई
सजा रहा है वो: मक़्तल को मेरी आमद पे
ये: नफ़ासत मेरे क़ातिल में किस तरह आई
दस्तबस्ता खड़े हैं सब के सब वुज़ू बनाए हुए
ऐसी पाकीज़गी महफ़िल में किस तरह आई
तू तो कहता था मेरा नाम भी लेगा न कभी
तो मेरी ख़ू तेरी ग़ज़ल में किस तरह आई ?!
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुराफ़ात: उद्दंडता; इत्र-ओ-गुल: सुगंध और पुष्प; ख़ैर-मक़दम: अगवानी, स्वागत; आगही: अग्रिम समझ; ग़ाफ़िल: निश्चेत, असावधान, अन्यमनस्क; अना: अति-स्वाभिमान, अकड़; बिस्मिल: घायल; मक़्तल: वध-गृह; आमद: आगमन; नफ़ासत: सौंदर्य-बोध; क़ातिल: हत्यारा; दस्तबस्ता: हाथ बांध कर; वुज़ू: नमाज़ पढ़ने के पूर्व देह-शुद्धि; पाकीज़गी: पवित्रता; ख़ू: विशिष्टता।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ४ /६/१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का वहां हार्दिक स्वागत है ।
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