ग़ज़ल तो हम भी कहते हैं हुनर तो हम भी रखते हैं
है कितना - कौन पानी में ख़बर तो हम भी रखते हैं
अमीर-ए-शहर हो तुम तो हमें क्यूं हो गिला इस पे
कहीं पे आरज़ूओं का शहर तो हम भी रखते हैं
दिलों को जीतने का फ़न तुम्हारे पास है बेशक़
मगर क़ारीन के दिल पे असर तो हम भी रखते हैं
बुरा कहिए भला कहिए समझ कर सोच कर कहिए
ज़ुबां खुल जाए ग़लती से ज़हर तो हम भी रखते हैं
नहीं हो इक गुल-ए-नरगिस तुम्हीं तो इस ज़माने में
अगर तुम हुस्न रखते हो नज़र तो हम भी रखते हैं
किया है इश्क़ तो हर इम्तेहां मंज़ूर है हमको
न हो तो आज़मा देखो जिगर तो हम भी रखते हैं
जलाने को बहुत कुछ है यहां पे दिल भी दुनिया भी
गिरा लें बर्क़ वो: हम पे शरर तो हम भी रखते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हुनर: कौशल; अमीर-ए-शहर: नगर पर राज करने वाला; गिला: आक्षेप; आरज़ूओं का शहर: इच्छाओं का नगर; फ़न: कला;
क़ारीन: पाठक ( बहुव.); गुल-ए-नरगिस: नर्गिस का फूल, मिथकीय मान्यतानुसार, नर्गिस के फूल एक हज़ार वर्ष में एक बार खिलते हैं और वे दृष्टिवान होते हैं; जिगर: साहस; बर्क़: आकाशीय बिजली, ईश्वरीय प्रकोप; शरर: चिंगारी।
है कितना - कौन पानी में ख़बर तो हम भी रखते हैं
अमीर-ए-शहर हो तुम तो हमें क्यूं हो गिला इस पे
कहीं पे आरज़ूओं का शहर तो हम भी रखते हैं
दिलों को जीतने का फ़न तुम्हारे पास है बेशक़
मगर क़ारीन के दिल पे असर तो हम भी रखते हैं
बुरा कहिए भला कहिए समझ कर सोच कर कहिए
ज़ुबां खुल जाए ग़लती से ज़हर तो हम भी रखते हैं
नहीं हो इक गुल-ए-नरगिस तुम्हीं तो इस ज़माने में
अगर तुम हुस्न रखते हो नज़र तो हम भी रखते हैं
किया है इश्क़ तो हर इम्तेहां मंज़ूर है हमको
न हो तो आज़मा देखो जिगर तो हम भी रखते हैं
जलाने को बहुत कुछ है यहां पे दिल भी दुनिया भी
गिरा लें बर्क़ वो: हम पे शरर तो हम भी रखते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हुनर: कौशल; अमीर-ए-शहर: नगर पर राज करने वाला; गिला: आक्षेप; आरज़ूओं का शहर: इच्छाओं का नगर; फ़न: कला;
क़ारीन: पाठक ( बहुव.); गुल-ए-नरगिस: नर्गिस का फूल, मिथकीय मान्यतानुसार, नर्गिस के फूल एक हज़ार वर्ष में एक बार खिलते हैं और वे दृष्टिवान होते हैं; जिगर: साहस; बर्क़: आकाशीय बिजली, ईश्वरीय प्रकोप; शरर: चिंगारी।
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