फिर मेरा हमनफ़स बने कोई
दिल की खामोशियां सुने कोई
आशिक़ों की बड़ी फ़जीहत है
ख़्वाब या दर्द में चुने कोई
कब से बनके मरीज़ लेटे हैं
दोस्त आए तो पूछने कोई
डूबने को हैं दरिय:-ए-ग़म में
आ रहे हाथ थामने कोई
लोग बिस्तर तो देख लेते हैं
रूह की सलवटें गिने कोई
लैस तीरे-हरूफ़ से हम हैं
आए मैदां में सामने कोई
रेशे-रेशे में नाम अल्ल: का
रूह का पैरहन बुने कोई !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हमनफ़स: सांसों का साझीदार, निकट मित्र; फ़जीहत: दुर्गति; दरिय:-ए-ग़म: दुखों की नदी; तीरे-हरूफ़: शब्द-बाण;
मैदां: मैदान; रूह का पैरहन: आत्मा का वस्त्र।
दिल की खामोशियां सुने कोई
आशिक़ों की बड़ी फ़जीहत है
ख़्वाब या दर्द में चुने कोई
कब से बनके मरीज़ लेटे हैं
दोस्त आए तो पूछने कोई
डूबने को हैं दरिय:-ए-ग़म में
आ रहे हाथ थामने कोई
लोग बिस्तर तो देख लेते हैं
रूह की सलवटें गिने कोई
लैस तीरे-हरूफ़ से हम हैं
आए मैदां में सामने कोई
रेशे-रेशे में नाम अल्ल: का
रूह का पैरहन बुने कोई !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हमनफ़स: सांसों का साझीदार, निकट मित्र; फ़जीहत: दुर्गति; दरिय:-ए-ग़म: दुखों की नदी; तीरे-हरूफ़: शब्द-बाण;
मैदां: मैदान; रूह का पैरहन: आत्मा का वस्त्र।
लोग बिस्तर तो देख लेते हैं
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रेशे-रेशे में नाम अल्ल: का
रूह का पैरहन बुने कोई !
कमाल के अश’आर हैं। बधाई !