मेरे बिना तेरी महफ़िल का हाल क्या होगा
तेरे ग़ुरूर तेरे दिल का हाल क्या होगा
मैं सर पे बांध के कफ़न खड़ा हूं मक़तल में
जो मुकर जाऊं तो क़ातिल का हाल क्या होगा
आज साक़ी है मेहरबान ख़ुदा ख़ैर करे
छू लिया जाम तो ग़ाफ़िल का हाल क्या होगा
मेरी कश्ती को इश्क़ हो गया है तूफ़ां से
मौज-ए-दरिया तेरा, साहिल का हाल क्या होगा
ख़ूब चारागरी है चश्म - ए - नमकदानी की
पड़े जो ज़ख्म पे बिस्मिल का हाल क्या होगा
निकल पड़ा हूं आज मैं तलाश-ए-मंज़िल को
देखते हैं रह-ए-मुश्किल का हाल क्या होगा !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ग़ुरूर: घमंड; मक़तल: वधिक का घर, वध-गृह; साक़ी: मदिरा परोसने वाला; जाम: मदिरा-पात्र; ग़ाफ़िल: असावधान, भ्रमित; मौजे-दरिया: नदी की लहर; साहिल: तटबंध; चारागरी: चिकित्सा-पद्धति; चश्म-ए-नमकदानी: नमकदानी-जैसी दृष्टि; बिस्मिल: घायल; रह-ए-मुश्किल: कठिन पथ।
तेरे ग़ुरूर तेरे दिल का हाल क्या होगा
मैं सर पे बांध के कफ़न खड़ा हूं मक़तल में
जो मुकर जाऊं तो क़ातिल का हाल क्या होगा
आज साक़ी है मेहरबान ख़ुदा ख़ैर करे
छू लिया जाम तो ग़ाफ़िल का हाल क्या होगा
मेरी कश्ती को इश्क़ हो गया है तूफ़ां से
मौज-ए-दरिया तेरा, साहिल का हाल क्या होगा
ख़ूब चारागरी है चश्म - ए - नमकदानी की
पड़े जो ज़ख्म पे बिस्मिल का हाल क्या होगा
निकल पड़ा हूं आज मैं तलाश-ए-मंज़िल को
देखते हैं रह-ए-मुश्किल का हाल क्या होगा !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ग़ुरूर: घमंड; मक़तल: वधिक का घर, वध-गृह; साक़ी: मदिरा परोसने वाला; जाम: मदिरा-पात्र; ग़ाफ़िल: असावधान, भ्रमित; मौजे-दरिया: नदी की लहर; साहिल: तटबंध; चारागरी: चिकित्सा-पद्धति; चश्म-ए-नमकदानी: नमकदानी-जैसी दृष्टि; बिस्मिल: घायल; रह-ए-मुश्किल: कठिन पथ।
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