क्या लोग हैं के: जिनको मुहब्बत नहीं हुई
हमको तो इस गुनाह से फ़ुरसत नहीं हुई
कुछ लोग ख़ुल्द तक में पारसा पहुंच गए
हमसे तो अपने दिल की हिफ़ाज़त नहीं हुई
मुंह मोड़ के गुज़रने लगे हो क़रीब से
ये: रंग-ए -बदज़नी है शराफ़त नहीं हुई
मुफ़्ती-ए-वक़्त इस क़दर नाराज़ हैं हमसे
ग़म में भी मयकशी की इजाज़त नहीं हुई
था ज़ीस्त में सुकून तो पढ़ते रहे नमाज़
मुश्किल घड़ी में हमसे इबादत नहीं हुई
किस काम के हैं आपके ये: दावा-ओ-दलील
लैला को सब्र क़ैस को राहत नहीं हुई
ऐ शाह ! बता कौन है ख़ुश इस निज़ाम से
रैयत का शुक्र कर के: बग़ावत नहीं हुई !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुल्द: स्वर्ग; पारसा: पवित्र हृदय, सदाचारी, निष्कलंक; रंगे-बदज़नी: दुर्व्यवहार, कदाचरण; मुफ़्ती-ए-वक़्त: समकालीन धर्माधिकारी, फ़तवा देने वाला; मयकशी: मद्यपान; ज़ीस्त: जीवन; सुकून: विश्रांति; दावा-ओ-दलील: शे'र की प्रथम एवं द्वितीय पंक्तियां, प्रथम पंक्ति में वक्तव्य ( दावा ) और दूसरी पंक्ति में उसके समर्थन में दिया जाने वाला तर्क ( दलील ); निजाम: शासन-शैली; रैयत: नागरिक, निवासी; शुक्र: आभार; बग़ावत: विद्रोह।
हमको तो इस गुनाह से फ़ुरसत नहीं हुई
कुछ लोग ख़ुल्द तक में पारसा पहुंच गए
हमसे तो अपने दिल की हिफ़ाज़त नहीं हुई
मुंह मोड़ के गुज़रने लगे हो क़रीब से
ये: रंग-ए -बदज़नी है शराफ़त नहीं हुई
मुफ़्ती-ए-वक़्त इस क़दर नाराज़ हैं हमसे
ग़म में भी मयकशी की इजाज़त नहीं हुई
था ज़ीस्त में सुकून तो पढ़ते रहे नमाज़
मुश्किल घड़ी में हमसे इबादत नहीं हुई
किस काम के हैं आपके ये: दावा-ओ-दलील
लैला को सब्र क़ैस को राहत नहीं हुई
ऐ शाह ! बता कौन है ख़ुश इस निज़ाम से
रैयत का शुक्र कर के: बग़ावत नहीं हुई !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुल्द: स्वर्ग; पारसा: पवित्र हृदय, सदाचारी, निष्कलंक; रंगे-बदज़नी: दुर्व्यवहार, कदाचरण; मुफ़्ती-ए-वक़्त: समकालीन धर्माधिकारी, फ़तवा देने वाला; मयकशी: मद्यपान; ज़ीस्त: जीवन; सुकून: विश्रांति; दावा-ओ-दलील: शे'र की प्रथम एवं द्वितीय पंक्तियां, प्रथम पंक्ति में वक्तव्य ( दावा ) और दूसरी पंक्ति में उसके समर्थन में दिया जाने वाला तर्क ( दलील ); निजाम: शासन-शैली; रैयत: नागरिक, निवासी; शुक्र: आभार; बग़ावत: विद्रोह।
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