नज़्म कह के बड़ा गुनाह किया
शैख़ साहब का घर तबाह किया
उसको मंज़िल ने हाथों-हाथ लिया
जिसको हमने शरीक़-ए-राह किया
कौन सिखलाएगा वफ़ा हमको
हमने घर बेच के निबाह किया
तेरी यादों से घर दहक़ता था
दश्त-ओ-सहरा को ख़्वाबगाह किया
चैन पाते तो किस तरह पाते
दुश्मन-ए-जां को ख़ैरख़्वाह किया
शान-ओ-शौक़त लुटाई यूं हमने
अपने दिल को जहांपनाह किया
सुर्ख़रू: क्यूं भला न हम होते
हर क़दम पे ख़ुदा गवाह किया।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शैख़ साहब: धार्मिक व्यक्ति; शरीक़-ए-राह: सहयात्री; दश्त-ओ-सहरा: वन और मरुस्थल; ख़्वाबगाह: सोने का स्थान, विश्रामालय; ख़ैरख़्वाह: शुभचिंतक; शान-ओ-शौक़त: ऐश्वर्य और समृद्धि; जहांपनाह: सब को आश्रय देने वाला, राजसी स्वभाव का; सुर्ख़रू: : सफल।
शैख़ साहब का घर तबाह किया
उसको मंज़िल ने हाथों-हाथ लिया
जिसको हमने शरीक़-ए-राह किया
कौन सिखलाएगा वफ़ा हमको
हमने घर बेच के निबाह किया
तेरी यादों से घर दहक़ता था
दश्त-ओ-सहरा को ख़्वाबगाह किया
चैन पाते तो किस तरह पाते
दुश्मन-ए-जां को ख़ैरख़्वाह किया
शान-ओ-शौक़त लुटाई यूं हमने
अपने दिल को जहांपनाह किया
सुर्ख़रू: क्यूं भला न हम होते
हर क़दम पे ख़ुदा गवाह किया।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शैख़ साहब: धार्मिक व्यक्ति; शरीक़-ए-राह: सहयात्री; दश्त-ओ-सहरा: वन और मरुस्थल; ख़्वाबगाह: सोने का स्थान, विश्रामालय; ख़ैरख़्वाह: शुभचिंतक; शान-ओ-शौक़त: ऐश्वर्य और समृद्धि; जहांपनाह: सब को आश्रय देने वाला, राजसी स्वभाव का; सुर्ख़रू: : सफल।
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