हज़ार बार निगाहें मिलीं करम न हुआ
ख़ुदा हुआ न हुआ वो: कभी सनम न हुआ
हमारे हाथ थी दुश्मन की ज़िंदगी यूं तो
किया इराद: बार-बार प' सितम न हुआ
रहे मरीज़ के मरीज़ तेरे पहलू में
हमें वो: अश्क तेरा आब-ए-ज़मज़म न हुआ
छुपा रहा जो दिल में हर मुक़ाम पे यूं
वो: राह-ए-अज़ल आज हमक़दम न हुआ
मेरी रिहाई के हक़ में हज़ार हाथ उठे
मेरा ज़मीर मगर हामि-ए-रहम न हुआ !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: करम: कृपा; सितम: अत्याचार; आब-ए-ज़मज़म: मक्का शरीफ़ के पवित्र निर्झर का जल; मुक़ाम: विराम-स्थल; राह-ए-अज़ल: मृत्यु-मार्ग; हमक़दम: सहयात्री; ज़मीर: स्वाभिमान; हामि-ए-रहम: दया का समर्थक, दया स्वीकार करने को तैयार।
ख़ुदा हुआ न हुआ वो: कभी सनम न हुआ
हमारे हाथ थी दुश्मन की ज़िंदगी यूं तो
किया इराद: बार-बार प' सितम न हुआ
रहे मरीज़ के मरीज़ तेरे पहलू में
हमें वो: अश्क तेरा आब-ए-ज़मज़म न हुआ
छुपा रहा जो दिल में हर मुक़ाम पे यूं
वो: राह-ए-अज़ल आज हमक़दम न हुआ
मेरी रिहाई के हक़ में हज़ार हाथ उठे
मेरा ज़मीर मगर हामि-ए-रहम न हुआ !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: करम: कृपा; सितम: अत्याचार; आब-ए-ज़मज़म: मक्का शरीफ़ के पवित्र निर्झर का जल; मुक़ाम: विराम-स्थल; राह-ए-अज़ल: मृत्यु-मार्ग; हमक़दम: सहयात्री; ज़मीर: स्वाभिमान; हामि-ए-रहम: दया का समर्थक, दया स्वीकार करने को तैयार।
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