इश्क़े-नाहक़ है मेरे ख़ाक़ में मिलने का सबब
इक पतंगे की तरह आग में जलने का सबब
तू कहे या न कहे कौन न समझेगा ये:
तर्क-ए-उल्फ़त है तेरे रंग बदलने का सबब
रात भर सो न सके और ग़ज़ल भी न हुई
मेरी उलझन है तेरे साथ टहलने का सबब
है इधर आतश-ए-ख़ुर्शीद उधर सोज़-ए-निहाँ
सराब-ओ-तिश्नगी है घर से निकलने का सबब
ग़र्दिश-ए-माह-ओ-ज़मीं इन्तहा-ए-इश्क़ हुई
दिन निकलने का सबब शाम के ढलने का सबब
वुज़ू के जोश में जलवे से रह गए महरूम
अब बताएं तो किसे हाथ मसलने का सबब !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: इश्क़े-नाहक़: व्यर्थ, अनुचित प्रेम; सबब: कारण; तर्क-ए-उल्फ़त: प्रेम का परित्याग; आतश-ए-ख़ुर्शीद: सूर्य की अग्नि; सोज़-ए-निहाँ: अंतर्मन में छुपी हुई आग; सराब-ओ-तिश्नगी: मृग-जल और मृग-तृष्णा; ग़र्दिश-ए-माह-ओ-ज़मी: चन्द्र और पृथ्वी का परिभ्रमण; इन्तहा-ए-इश्क़: प्रेम की अति; वुज़ू: नमाज़ के लिए शरीर को पवित्र करना; जलवे: ( ईश्वर के ) दर्शन; महरूम: वंचित।
इक पतंगे की तरह आग में जलने का सबब
तू कहे या न कहे कौन न समझेगा ये:
तर्क-ए-उल्फ़त है तेरे रंग बदलने का सबब
रात भर सो न सके और ग़ज़ल भी न हुई
मेरी उलझन है तेरे साथ टहलने का सबब
है इधर आतश-ए-ख़ुर्शीद उधर सोज़-ए-निहाँ
सराब-ओ-तिश्नगी है घर से निकलने का सबब
ग़र्दिश-ए-माह-ओ-ज़मीं इन्तहा-ए-इश्क़ हुई
दिन निकलने का सबब शाम के ढलने का सबब
वुज़ू के जोश में जलवे से रह गए महरूम
अब बताएं तो किसे हाथ मसलने का सबब !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: इश्क़े-नाहक़: व्यर्थ, अनुचित प्रेम; सबब: कारण; तर्क-ए-उल्फ़त: प्रेम का परित्याग; आतश-ए-ख़ुर्शीद: सूर्य की अग्नि; सोज़-ए-निहाँ: अंतर्मन में छुपी हुई आग; सराब-ओ-तिश्नगी: मृग-जल और मृग-तृष्णा; ग़र्दिश-ए-माह-ओ-ज़मी: चन्द्र और पृथ्वी का परिभ्रमण; इन्तहा-ए-इश्क़: प्रेम की अति; वुज़ू: नमाज़ के लिए शरीर को पवित्र करना; जलवे: ( ईश्वर के ) दर्शन; महरूम: वंचित।
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