गिरते हैं तो गिर जाएं हम आपकी नज़र से
ईमान तो न देंगे यूं रंज़िशों के डर से
मिलते थे कल तलक जो नज़रें झुका-झुका के
मग़रूर हो गए वो: इकराम की ख़बर से
बे-दिल हों सामईं तो कहने से फ़ायदा क्या
ख़ामोश ही किसी दिन उठ जाएंगे शहर से
मिट ही गए जहां से औरंगज़ेब -ओ- अकबर
बचता न कोई देखा लम्हात के असर से
देखेंगे किस तरह से चलता है ज़ौर-ए-ख़ंजर
हम मुतमईं हैं अपने अल्फ़ाज़ के असर से !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रंज़िश:शत्रुता; मग़रूर: घमंडी; इकराम: पुरस्कार या कृपा पाना; बे-दिल: हृदयहीन; सामई: श्रोता, सामने बैठे लोग;
लम्हात: क्षण ( बहुव. ); ज़ौर-ए-ख़ंजर: क्षुरी का बल;मुतमईं: आश्वस्त; अल्फ़ाज़: शब्द (बहुव.)।
ईमान तो न देंगे यूं रंज़िशों के डर से
मिलते थे कल तलक जो नज़रें झुका-झुका के
मग़रूर हो गए वो: इकराम की ख़बर से
बे-दिल हों सामईं तो कहने से फ़ायदा क्या
ख़ामोश ही किसी दिन उठ जाएंगे शहर से
मिट ही गए जहां से औरंगज़ेब -ओ- अकबर
बचता न कोई देखा लम्हात के असर से
देखेंगे किस तरह से चलता है ज़ौर-ए-ख़ंजर
हम मुतमईं हैं अपने अल्फ़ाज़ के असर से !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रंज़िश:शत्रुता; मग़रूर: घमंडी; इकराम: पुरस्कार या कृपा पाना; बे-दिल: हृदयहीन; सामई: श्रोता, सामने बैठे लोग;
लम्हात: क्षण ( बहुव. ); ज़ौर-ए-ख़ंजर: क्षुरी का बल;मुतमईं: आश्वस्त; अल्फ़ाज़: शब्द (बहुव.)।
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