मुझसे मेरा शहर छूटा चाहता है
इक मुबारक ख़्वाब टूटा चाहता है
दोस्त तो सारे किनारा कर चुके
कौन है जो हमको रोका चाहता है
ग़र्द में मलबूस आईन:-ए-दिल
आंसुओं से पाप धोया चाहता है
शे'र कह के हुस्न पे शायर सनम
मुफ़्त में बदनाम होना चाहता है
तोड़ के सारी उम्मीदें दीद की
ख़्वाब चश्म-ए-नम में डूबा चाहता है
ताजिर-ए-मग़रिब को दे के दावतें
मुल्क शायद और धोखा चाहता है
हड्डियां ही रह गईं हैं जिस्म में
और हाकिम ख़ून चूसा चाहता है !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुबारक: शुभ; ग़र्द: धूल; मलबूस: लिपटा हुआ; दीद: दर्शन; चश्म-ए-नम: भीगी आंखें;
ताजिर-ए-मग़रिब: पश्चिमी देशों के व्यापारी; हाकिम: शासक।
इक मुबारक ख़्वाब टूटा चाहता है
दोस्त तो सारे किनारा कर चुके
कौन है जो हमको रोका चाहता है
ग़र्द में मलबूस आईन:-ए-दिल
आंसुओं से पाप धोया चाहता है
शे'र कह के हुस्न पे शायर सनम
मुफ़्त में बदनाम होना चाहता है
तोड़ के सारी उम्मीदें दीद की
ख़्वाब चश्म-ए-नम में डूबा चाहता है
ताजिर-ए-मग़रिब को दे के दावतें
मुल्क शायद और धोखा चाहता है
हड्डियां ही रह गईं हैं जिस्म में
और हाकिम ख़ून चूसा चाहता है !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुबारक: शुभ; ग़र्द: धूल; मलबूस: लिपटा हुआ; दीद: दर्शन; चश्म-ए-नम: भीगी आंखें;
ताजिर-ए-मग़रिब: पश्चिमी देशों के व्यापारी; हाकिम: शासक।
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