या तो सज्दे में रहो या सर नहीं
ये: दर-ए-महबूब है, मिम्बर नहीं
फिर हरम में सरबरहना आ गए
क्या तुम्हें रुस्वाइयों का डर नहीं ?
बदगुमां यूं भी न हो तू हुस्न पे
हम भी दिल रखते हैं इक पत्थर नहीं
ख़ैर-मक़दम कर तेरे मेहमान हैं
तोहफ़:-ए-गुल लाए हैं, ख़ंजर नहीं
किस तरह ये: दोस्ती आगे बढ़े
मैं शहंशह और तू शायर नहीं
असलहों के रू-ब-रू ईमान है
जिस्म पे मेरे जिरह बख़्तर नहीं
अर्श पे हों या के: कोह-ए-तूर पे
वो: हमारी दीद से बाहर नहीं
कर लिया ईमां ख़ुदा पे कर लिया
दे मुझे तस्बीह, अब साग़र नहीं
हो चुकी मेहमां-नवाज़ी, बस मियां
ख़ुल्द, ख़ाला का तुम्हारी घर नहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सज्दा: नमाज़ में सिर झुकाना; दर-ए-महबूब: प्रियतम का द्वार; मिम्बर: मस्जिद में रखा जाने वाला पत्थर जिसके सामने सिर झुकाते हैं; हरम: मस्जिद; सर बरहना: नंगे सिर, बिना टोपी लगाए; रुस्वाइयां: अपमान ( बहु .); बदगुमां: भ्रमित; ख़ैर-मक़दम: स्वागत; तोहफ़:-ए-गुल: फूलों का उपहार, गुलदस्ता; ख़ंजर: चाक़ू; असलहा: शस्त्रास्त्र; ईमान: आस्था; जिरह बख़्तर: कवच; अर्श: आकाश; कोह-ए-तूर: अंधेरे का पर्वत, मिथक के अनुसार हज़रत मूसा स . अ . के समक्ष ख़ुदा यहां प्रकट हुए थे; दीद: दृष्टि; तस्बीह: सुमिरनी; साग़र: मदिरा-पात्र;मेहमां-नवाज़ी: आतिथ्य; ख़ुल्द: स्वर्ग; ख़ाला: मौसी।
ये: दर-ए-महबूब है, मिम्बर नहीं
फिर हरम में सरबरहना आ गए
क्या तुम्हें रुस्वाइयों का डर नहीं ?
बदगुमां यूं भी न हो तू हुस्न पे
हम भी दिल रखते हैं इक पत्थर नहीं
ख़ैर-मक़दम कर तेरे मेहमान हैं
तोहफ़:-ए-गुल लाए हैं, ख़ंजर नहीं
किस तरह ये: दोस्ती आगे बढ़े
मैं शहंशह और तू शायर नहीं
असलहों के रू-ब-रू ईमान है
जिस्म पे मेरे जिरह बख़्तर नहीं
अर्श पे हों या के: कोह-ए-तूर पे
वो: हमारी दीद से बाहर नहीं
कर लिया ईमां ख़ुदा पे कर लिया
दे मुझे तस्बीह, अब साग़र नहीं
हो चुकी मेहमां-नवाज़ी, बस मियां
ख़ुल्द, ख़ाला का तुम्हारी घर नहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सज्दा: नमाज़ में सिर झुकाना; दर-ए-महबूब: प्रियतम का द्वार; मिम्बर: मस्जिद में रखा जाने वाला पत्थर जिसके सामने सिर झुकाते हैं; हरम: मस्जिद; सर बरहना: नंगे सिर, बिना टोपी लगाए; रुस्वाइयां: अपमान ( बहु .); बदगुमां: भ्रमित; ख़ैर-मक़दम: स्वागत; तोहफ़:-ए-गुल: फूलों का उपहार, गुलदस्ता; ख़ंजर: चाक़ू; असलहा: शस्त्रास्त्र; ईमान: आस्था; जिरह बख़्तर: कवच; अर्श: आकाश; कोह-ए-तूर: अंधेरे का पर्वत, मिथक के अनुसार हज़रत मूसा स . अ . के समक्ष ख़ुदा यहां प्रकट हुए थे; दीद: दृष्टि; तस्बीह: सुमिरनी; साग़र: मदिरा-पात्र;मेहमां-नवाज़ी: आतिथ्य; ख़ुल्द: स्वर्ग; ख़ाला: मौसी।
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