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गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

जो भी दिल में है

हम  खिचड़ी  अल्फाज़  कहां  से  लाएं
बहके-बहके    वाज़     कहां   से  लाएं

सीधा-सादा   दिल   है    सच्ची  सूरत
क़ातिल  के   अंदाज़   कहां   से   लाएं

मेहनतकश   हम    मुद्दा    रोज़ी-रोटी
शायर   की   परवाज़   कहां  से   लाएं

नाले   सीने   में   ही    घुट   जाते   हैं
मजनूँ   की  आवाज़   कहां  से   लाएं

समझे  तू  ख़ुद ही तो बेहतर है  यारां
हूरों-जैसे      नाज़     कहां   से   लाएं

जो भी दिल में है  वो:  सब  पे  ज़ाहिर
अख़बारों   के   राज़   कहां   से   लाएं !

                                                    ( 2013 )

                                           -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: अल्फाज़: शब्द ( बहुव .); वाज़: प्रवचन; अंदाज़: शैली; परवाज़: उड़ान; नाले: 
           आर्त्तनाद; मजनूँ: क़ैस, लैला का प्रेमी, प्रेमोन्मादी; नाज़: नखरे; ज़ाहिर: प्रकट।

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