लब-ए-सफ़र हैं कोई रास्ता मिले न मिले
तेरे शहर, तेरे घर का पता मिले न मिले
बहार ख़ोफ़ज़दा-सी भटक रही है कहीं
हमारी राह में बाद-ए-सबा मिले न मिले
नई बहर में तख़ल्लुस नया तो मिल जाए
नया मयार, नया मरतबा मिले न मिले
खड़े हुए हैं ख़राबात के आगे तन्हा
के: हमप्याला कोई पारसा मिले न मिले
चले हैं मुल्क-ए-अदम देखते हैं मुड़-मुड़ के
यहां सनम है, वहां पे ख़ुदा मिले न मिले !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: लब-ए-सफ़र: यात्रा के लिए सन्नद्ध; ख़ोफ़ज़दा: भयभीत; बहर: छंद; तख़ल्लुस: उपनाम; मयार: ऊंचाई ; मरतबा: लक्ष्य; ख़राबात: मदिरालय; तन्हा: अकेले; हमप्याला: साथ में पीने वाला; पारसा: पवित्रात्मा; मुल्क-ए-अदम: ईश्वर के देश ( की ओर )। .
तेरे शहर, तेरे घर का पता मिले न मिले
बहार ख़ोफ़ज़दा-सी भटक रही है कहीं
हमारी राह में बाद-ए-सबा मिले न मिले
नई बहर में तख़ल्लुस नया तो मिल जाए
नया मयार, नया मरतबा मिले न मिले
खड़े हुए हैं ख़राबात के आगे तन्हा
के: हमप्याला कोई पारसा मिले न मिले
चले हैं मुल्क-ए-अदम देखते हैं मुड़-मुड़ के
यहां सनम है, वहां पे ख़ुदा मिले न मिले !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: लब-ए-सफ़र: यात्रा के लिए सन्नद्ध; ख़ोफ़ज़दा: भयभीत; बहर: छंद; तख़ल्लुस: उपनाम; मयार: ऊंचाई ; मरतबा: लक्ष्य; ख़राबात: मदिरालय; तन्हा: अकेले; हमप्याला: साथ में पीने वाला; पारसा: पवित्रात्मा; मुल्क-ए-अदम: ईश्वर के देश ( की ओर )। .
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