दश्त-ए-सहरा में चिनारों की उम्मीदें ले कर
हम भी जीते हैं बहारों की उम्मीदें ले कर
रात दर रात हुआ जाता है तारीक फ़लक
सुब्ह होती है सितारों की उम्मीदें ले कर
ग़म के मारे हैं, कहां जाएं तेरे दर के सिवा
सर-ब-सज्द: हैं सहारों की उम्मीदें ले कर
आ भी जा अब के: तेरे ग़म में आतश-ए-जां भी
बुझी जाती है शरारों की उम्मीदें ले कर
काश! फिर दिल से पुकारे कोई आशिक़ तुझको
हम भी आएंगे नज़ारों की उम्मीदें ले कर
शुक्र है, अह् ल-ए-सुख़न अब भी हैं ईमां वाले
हाथ उठाते हैं हज़ारों की उम्मीदें ले कर
हाय ! ये: दौर-ए-माशराई के: माशूक़ तुझे
याद करते हैं इज़ारों की उम्मीदें ले कर !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दश्त-ए-सहरा: मरुस्थल की निर्जनता; चिनार: हिम-प्रदेशों में पाया जाने वाला एक छायादार वृक्ष; तारीक: अंधकारमय; फ़लक़: आकाश का विस्तार; सर-ब-सज्द: :सजदे में सर झुकाए, साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में; आतश-ए-जां: प्राणाग्नि ; शरारा: चिंगारी; आशिक़: सच्चा प्रेमी, यहां विशिष्टार्थ में, हज़रत मूसा स .अ . के सन्दर्भ में; इसी क्रम में, नज़ारा: दृश्य, यहां विशिष्टार्थ ईश्वर के प्रकट होने के अर्थ में; अह् ल -ए-सुख़न: साहित्य-जगत, सब के शुभाकांक्षी; ईमां: आस्था; दौर-ए-माशराई: पूंजीवादी समय; माशूक़: प्रिय; इज़ारा: ( संपत्ति पर ) एकाधिकार।
हम भी जीते हैं बहारों की उम्मीदें ले कर
रात दर रात हुआ जाता है तारीक फ़लक
सुब्ह होती है सितारों की उम्मीदें ले कर
ग़म के मारे हैं, कहां जाएं तेरे दर के सिवा
सर-ब-सज्द: हैं सहारों की उम्मीदें ले कर
आ भी जा अब के: तेरे ग़म में आतश-ए-जां भी
बुझी जाती है शरारों की उम्मीदें ले कर
काश! फिर दिल से पुकारे कोई आशिक़ तुझको
हम भी आएंगे नज़ारों की उम्मीदें ले कर
शुक्र है, अह् ल-ए-सुख़न अब भी हैं ईमां वाले
हाथ उठाते हैं हज़ारों की उम्मीदें ले कर
हाय ! ये: दौर-ए-माशराई के: माशूक़ तुझे
याद करते हैं इज़ारों की उम्मीदें ले कर !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दश्त-ए-सहरा: मरुस्थल की निर्जनता; चिनार: हिम-प्रदेशों में पाया जाने वाला एक छायादार वृक्ष; तारीक: अंधकारमय; फ़लक़: आकाश का विस्तार; सर-ब-सज्द: :सजदे में सर झुकाए, साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में; आतश-ए-जां: प्राणाग्नि ; शरारा: चिंगारी; आशिक़: सच्चा प्रेमी, यहां विशिष्टार्थ में, हज़रत मूसा स .अ . के सन्दर्भ में; इसी क्रम में, नज़ारा: दृश्य, यहां विशिष्टार्थ ईश्वर के प्रकट होने के अर्थ में; अह् ल -ए-सुख़न: साहित्य-जगत, सब के शुभाकांक्षी; ईमां: आस्था; दौर-ए-माशराई: पूंजीवादी समय; माशूक़: प्रिय; इज़ारा: ( संपत्ति पर ) एकाधिकार।
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