मैं हूं , मेरे सामने तस्वीर है
तू है और इक ख़्वाब की ताबीर है
तुझसे मेरी उन्सियत यूं ही नहीं
अर्श से उतरी हुई तहरीर है
उठ गया है रिज़्क़ मेरा शहर से
फिर सफ़र है, पांव की ज़ंजीर है
उसने पाईं महफ़िलें, हमने ख़ला
अपने अपने ज़ख़्म की तासीर है
ज़ुल्मतों के सामने इक हौसला
मेरा सर है, सीन:-ए-शमशीर है
फिर ग़ुलामी दे रही है दस्तकें
रहनुमां हैं, मुल्क की तक़दीर है
दें सिपाही ख़ून, वो: पाए ख़िल 'अत
हिंद क्या सरदार की जागीर है !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ताबीर: मूर्तरूप; उन्सियत: लगाव;अर्श: आकाश; तहरीर: लिखावट, ईश्वरीय आदेश; रिज़्क़ : दाना-पानी; ख़ला : एकांत;
तासीर: गुण-धर्म; ज़ुल्मत: अत्याचार; सीन:-ए-शमशीर: तलवार का सीना, धार; रहनुमां: नेता, मार्गदर्शक; ख़िल'अत: राजकीय सम्मान।
तू है और इक ख़्वाब की ताबीर है
तुझसे मेरी उन्सियत यूं ही नहीं
अर्श से उतरी हुई तहरीर है
उठ गया है रिज़्क़ मेरा शहर से
फिर सफ़र है, पांव की ज़ंजीर है
उसने पाईं महफ़िलें, हमने ख़ला
अपने अपने ज़ख़्म की तासीर है
ज़ुल्मतों के सामने इक हौसला
मेरा सर है, सीन:-ए-शमशीर है
फिर ग़ुलामी दे रही है दस्तकें
रहनुमां हैं, मुल्क की तक़दीर है
दें सिपाही ख़ून, वो: पाए ख़िल 'अत
हिंद क्या सरदार की जागीर है !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ताबीर: मूर्तरूप; उन्सियत: लगाव;अर्श: आकाश; तहरीर: लिखावट, ईश्वरीय आदेश; रिज़्क़ : दाना-पानी; ख़ला : एकांत;
तासीर: गुण-धर्म; ज़ुल्मत: अत्याचार; सीन:-ए-शमशीर: तलवार का सीना, धार; रहनुमां: नेता, मार्गदर्शक; ख़िल'अत: राजकीय सम्मान।
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