मुद्दतों दिल में रहा और हमज़ुबां न हुआ
वस्ल की शब भी मेरा यार मेहरबां न हुआ
एक हम हैं के: ख़िज़ां में भी मुस्कुराते हैं
एक वो: है के: बहारों में शादमां न हुआ
लोग गढ़ते रहे हर रोज़ जफ़ा के क़िस्से
मेरी जानिब से कभी यार बदगुमां न हुआ
क़त्ल कर ही दिया उसने हमें रफ़्ता-रफ़्ता
शुक्र है, दर्द-ए-दिल हमारा रायगां न हुआ
उसके इनकार के सदमात दूर तक पहुंचे
दरिय:-ए-अश्क हद-ए-चश्म से रवां न हुआ
यूं तो हर सिम्त नज़र आता है उसका चेहरा
जहां तलाश किया वो: वहां-वहां न हुआ !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुद्दतों: लम्बे समय; हमज़ुबां: सहमत; वस्ल की शब: मिलन की रात; ख़िज़ां: पतझड़; जफ़ा: अन्य से निर्वाह; जानिब: ओर; बदगुमा: उदासीन, भ्रमित; रफ़्ता-रफ़्ता: धीरे-धीरे; रायगां: व्यर्थ; सदमात: आघात ( बहुव . ); आंसुओं की नदी; हद-ए-चश्म: आंख की कोर, सीमा; रवां: चलायमान; सिम्त: ओर।
वस्ल की शब भी मेरा यार मेहरबां न हुआ
एक हम हैं के: ख़िज़ां में भी मुस्कुराते हैं
एक वो: है के: बहारों में शादमां न हुआ
लोग गढ़ते रहे हर रोज़ जफ़ा के क़िस्से
मेरी जानिब से कभी यार बदगुमां न हुआ
क़त्ल कर ही दिया उसने हमें रफ़्ता-रफ़्ता
शुक्र है, दर्द-ए-दिल हमारा रायगां न हुआ
उसके इनकार के सदमात दूर तक पहुंचे
दरिय:-ए-अश्क हद-ए-चश्म से रवां न हुआ
यूं तो हर सिम्त नज़र आता है उसका चेहरा
जहां तलाश किया वो: वहां-वहां न हुआ !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुद्दतों: लम्बे समय; हमज़ुबां: सहमत; वस्ल की शब: मिलन की रात; ख़िज़ां: पतझड़; जफ़ा: अन्य से निर्वाह; जानिब: ओर; बदगुमा: उदासीन, भ्रमित; रफ़्ता-रफ़्ता: धीरे-धीरे; रायगां: व्यर्थ; सदमात: आघात ( बहुव . ); आंसुओं की नदी; हद-ए-चश्म: आंख की कोर, सीमा; रवां: चलायमान; सिम्त: ओर।
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