ख़ुदी के दाग़ से ख़ुद को बचा लेते तो अच्छा था
ख़ुदा को हमक़दम अपना बना लेते तो अच्छा था
हमारे सामने भी मंज़िलें थीं, कारवां थे, रास्ते भी थे
वफ़ा के ज़ुल्म से दामन छुड़ा लेते तो अच्छा था
अक़ीदत थी हमारी जो उन्हें दिल तक बुला लाई
उन्हें कुछ रोज़ रुकने को मना लेते तो अच्छा था
अगर कुछ बदगुमानी थी तो खुल कर बात कर लेते
गले लग कर गिले-शिकवे मिटा लेते तो अच्छा था
ये: माना थी अना हममें के: उनसे रूठ बैठे थे
मगर इस बार वो: हमको निभा लेते तो अच्छा था !
( 2013 )
- सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अक़ीदत : श्रद्धा; बदगुमानी: नासमझी; अना: अकड़।
ख़ुदा को हमक़दम अपना बना लेते तो अच्छा था
हमारे सामने भी मंज़िलें थीं, कारवां थे, रास्ते भी थे
वफ़ा के ज़ुल्म से दामन छुड़ा लेते तो अच्छा था
अक़ीदत थी हमारी जो उन्हें दिल तक बुला लाई
उन्हें कुछ रोज़ रुकने को मना लेते तो अच्छा था
अगर कुछ बदगुमानी थी तो खुल कर बात कर लेते
गले लग कर गिले-शिकवे मिटा लेते तो अच्छा था
ये: माना थी अना हममें के: उनसे रूठ बैठे थे
मगर इस बार वो: हमको निभा लेते तो अच्छा था !
( 2013 )
- सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अक़ीदत : श्रद्धा; बदगुमानी: नासमझी; अना: अकड़।
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