दिल शहीद-ए-वफ़ा हो गया
रश्क़ का मुद्दआ हो गया
लग गए पंख अफ़वाह को
वाक़या क्या से क्या हो गया
शे'र हमने कहा आप पे
इश्क़ का फ़लसफ़ा हो गया
एक बे-पर की ये: भी सुनें
वो: हसीं बावफ़ा हो गया
बाख़ुदा, दिन में दुश्मन रहा
रात में दिलरुबा हो गया
जिसने इन्सां में देखा ख़ुदा
वो: हबीब-ए-ख़ुदा हो गया !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शहीद-ए-वफ़ा: निर्वाह पर बलि; रश्क़: ईर्ष्या, प्रतियोगिता; वाक़या: घटनाक्रम; फ़लसफ़ा: दर्शन;
बावफ़ा: निर्वाह करने वाला; दिलरुबा: मनोहारी; हबीब-ए-ख़ुदा: ईश्वर का प्रिय, पीर।
रश्क़ का मुद्दआ हो गया
लग गए पंख अफ़वाह को
वाक़या क्या से क्या हो गया
शे'र हमने कहा आप पे
इश्क़ का फ़लसफ़ा हो गया
एक बे-पर की ये: भी सुनें
वो: हसीं बावफ़ा हो गया
बाख़ुदा, दिन में दुश्मन रहा
रात में दिलरुबा हो गया
जिसने इन्सां में देखा ख़ुदा
वो: हबीब-ए-ख़ुदा हो गया !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शहीद-ए-वफ़ा: निर्वाह पर बलि; रश्क़: ईर्ष्या, प्रतियोगिता; वाक़या: घटनाक्रम; फ़लसफ़ा: दर्शन;
बावफ़ा: निर्वाह करने वाला; दिलरुबा: मनोहारी; हबीब-ए-ख़ुदा: ईश्वर का प्रिय, पीर।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें