कौन जाने के: ज़िंदगी क्या है
अपने दिल में धुआं-धुआं-सा है
हसरतों के दरख़्त सूख गए
जाने मौसम की आरज़ू क्या है
वो: हमारे मुरीद होते थे
हादसा पिछली ज़िंदगी का है
उनके लब पे लहू की बूंदें हैं
बेगुनाही का ये: बहाना है
शे'र दर शे'र काफ़िया कमतर
क्या ज़ईफी का ये: तकाज़ा है ?
( 2012 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुरीद: अभिलाषी, भक्त; ज़ईफी : वृद्धावस्था; तकाज़ा: मांग, अवश्यम्भाविता।
अपने दिल में धुआं-धुआं-सा है
हसरतों के दरख़्त सूख गए
जाने मौसम की आरज़ू क्या है
वो: हमारे मुरीद होते थे
हादसा पिछली ज़िंदगी का है
उनके लब पे लहू की बूंदें हैं
बेगुनाही का ये: बहाना है
शे'र दर शे'र काफ़िया कमतर
क्या ज़ईफी का ये: तकाज़ा है ?
( 2012 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुरीद: अभिलाषी, भक्त; ज़ईफी : वृद्धावस्था; तकाज़ा: मांग, अवश्यम्भाविता।
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