क्यूं न हम बेक़रार हो जाएं
तेरे दामन में छुप के सो जाएं
काश! ऐसी भी कोई रात मिले
तेरे ख़्वाबों में आ के सो जाएं
कोई अपना भी मुंतज़िर है कहीं
तू ज़रा मुस्कुरा दे तो जाएं
कुछ न कुछ इंतेज़ाम-ए-होश रखें
सू-ए-क़ातिल सनम को जो जाएं
उनकी महफ़िल में बरसता है नूर
जिनको दावत मिली हो , वो: जाएं
या इलाही ! कभी करम कर दे
हम भी रिज़्वां के बाग़ को जाएं।
( 2009 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुन्तजिर: प्रतीक्षा करने वाला; इंतेज़ाम-ए-होश: होश में रहने का प्रबंध, साधन;
सू-ए-क़ातिल सनम: जान लेने वाले सौंदर्य वाला प्रिय व्यक्ति की ओर; रिज़्वां का
बाग़: स्वर्ग का मिथकीय उपवन, रिज़वान को उसका रक्षक कहा जाता है।
तेरे दामन में छुप के सो जाएं
काश! ऐसी भी कोई रात मिले
तेरे ख़्वाबों में आ के सो जाएं
कोई अपना भी मुंतज़िर है कहीं
तू ज़रा मुस्कुरा दे तो जाएं
कुछ न कुछ इंतेज़ाम-ए-होश रखें
सू-ए-क़ातिल सनम को जो जाएं
उनकी महफ़िल में बरसता है नूर
जिनको दावत मिली हो , वो: जाएं
या इलाही ! कभी करम कर दे
हम भी रिज़्वां के बाग़ को जाएं।
( 2009 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुन्तजिर: प्रतीक्षा करने वाला; इंतेज़ाम-ए-होश: होश में रहने का प्रबंध, साधन;
सू-ए-क़ातिल सनम: जान लेने वाले सौंदर्य वाला प्रिय व्यक्ति की ओर; रिज़्वां का
बाग़: स्वर्ग का मिथकीय उपवन, रिज़वान को उसका रक्षक कहा जाता है।
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