यूं भले उनको हमसे मुहब्बत न हो
मस्ल: ए दिल पे लेकिन सियासत न हो
क्या ज़रूरी है, नज़रें बचाते फिरें
बेरुख़ी ही सही, पर अदावत न हो
उनको पैग़ाम दें, वो: बुरा मान लें
क्यूं करें वो: गुनह जिसमें लज़्ज़त न हो
कोई तो उस शहर का पता दीजिए
के: जहां आशिक़ी की रवायत न हो
दुश्मनों की अदाएं सलामत रहें
फिर भले आसमां की इनायत न हो
अय ख़ुदा , तू मुझे इतनी तौफ़ीक़ दे
वक़्त-ए-रुख़्सत किसी से शिकायत न हो !
( 2011 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अदावत: शत्रुता; लज़्ज़त: स्वाद, आनंद; रवायत: परंपरा; तौफ़ीक़: गरिमा; इनायत: कृपा;
वक़्त-ए-रुख़्सत: ( संसार से ) विदाई के समय।
मस्ल: ए दिल पे लेकिन सियासत न हो
क्या ज़रूरी है, नज़रें बचाते फिरें
बेरुख़ी ही सही, पर अदावत न हो
उनको पैग़ाम दें, वो: बुरा मान लें
क्यूं करें वो: गुनह जिसमें लज़्ज़त न हो
कोई तो उस शहर का पता दीजिए
के: जहां आशिक़ी की रवायत न हो
दुश्मनों की अदाएं सलामत रहें
फिर भले आसमां की इनायत न हो
अय ख़ुदा , तू मुझे इतनी तौफ़ीक़ दे
वक़्त-ए-रुख़्सत किसी से शिकायत न हो !
( 2011 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अदावत: शत्रुता; लज़्ज़त: स्वाद, आनंद; रवायत: परंपरा; तौफ़ीक़: गरिमा; इनायत: कृपा;
वक़्त-ए-रुख़्सत: ( संसार से ) विदाई के समय।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें