मैं अनादार हूं, मग़रूर नहीं
साफ़-गो हूं प' बे-शऊर नहीं
एक नन्ही-सी शम्'अ हूं, ख़ुश हूं
नूर हूं, फ़क़्त ख़्वाब-ए-नूर नहीं
दिल में कुछ, और ज़ुबां पे कुछ हो
ये: तरीक़ा मुझे मंज़ूर नहीं
उसकी क़ुर्बत का नशा बाक़ी है
शराब पी के मैं मसरूर नहीं
ख़ुद सजाता हूं मुक़द्दर अपना
अर्श के सामने मजबूर नहीं
मेरी अफ़्सुर्दगी पे तंज़ न कर
थका हुवा हूं, ग़म से चूर नहीं
ढूंढता है कहां मुझे, ऐ शैख़
तेरे दिल में हूं, तुझसे दूर नहीं।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अनादार: स्वाभिमानी; मग़रूर: गर्वोन्मत्त; साफ़-गो: स्पष्टवादी; बे-शऊर: अशिष्ट; ख़्वाब-ए-नूर: प्रकाश का स्वप्न;
क़ुरबत: निकटता; मसरूर: मदमत्त; अर्श: भाग्य, आकाश; अफ़्सुर्दगी: मुख-मलिनता; तंज़: व्यंग।
साफ़-गो हूं प' बे-शऊर नहीं
एक नन्ही-सी शम्'अ हूं, ख़ुश हूं
नूर हूं, फ़क़्त ख़्वाब-ए-नूर नहीं
दिल में कुछ, और ज़ुबां पे कुछ हो
ये: तरीक़ा मुझे मंज़ूर नहीं
उसकी क़ुर्बत का नशा बाक़ी है
शराब पी के मैं मसरूर नहीं
ख़ुद सजाता हूं मुक़द्दर अपना
अर्श के सामने मजबूर नहीं
मेरी अफ़्सुर्दगी पे तंज़ न कर
थका हुवा हूं, ग़म से चूर नहीं
ढूंढता है कहां मुझे, ऐ शैख़
तेरे दिल में हूं, तुझसे दूर नहीं।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अनादार: स्वाभिमानी; मग़रूर: गर्वोन्मत्त; साफ़-गो: स्पष्टवादी; बे-शऊर: अशिष्ट; ख़्वाब-ए-नूर: प्रकाश का स्वप्न;
क़ुरबत: निकटता; मसरूर: मदमत्त; अर्श: भाग्य, आकाश; अफ़्सुर्दगी: मुख-मलिनता; तंज़: व्यंग।
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