सब कुछ है उसके घर में मगर आईना नहीं
बेशक़ वो: शहंशाह हो, लेकिन ख़ुदा नहीं
हम उसके परस्तार कभी हो न पाएंगे
जिसकी जबीं पे लफ्ज़-ए-मोहब्बत लिखा नहीं
ये: कौन चाहता है के: तन्हा सफ़र कटे
प' जिस पे सब चलें वो: मेरा रास्ता नहीं
ये: उसकी बात है के: वो: समझे है क्या हमें
उसकी अना हमारे लिए मुद्दआ नहीं
रंग-ओ-गुलाल हाथ में, सीने में रंजिशें
ये: सिर्फ़ सियासत है, कोई फ़लसफ़ा नहीं।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: परस्तार: पूजक, अनुयायी; जबीं: मस्तक; अना: अति-स्वाभिमान; मुद्दआ: विषय;
रंजिश: शत्रुता का भाव; फ़लसफ़ा: दार्शनिक सिद्धांत ।
बेशक़ वो: शहंशाह हो, लेकिन ख़ुदा नहीं
हम उसके परस्तार कभी हो न पाएंगे
जिसकी जबीं पे लफ्ज़-ए-मोहब्बत लिखा नहीं
ये: कौन चाहता है के: तन्हा सफ़र कटे
प' जिस पे सब चलें वो: मेरा रास्ता नहीं
ये: उसकी बात है के: वो: समझे है क्या हमें
उसकी अना हमारे लिए मुद्दआ नहीं
रंग-ओ-गुलाल हाथ में, सीने में रंजिशें
ये: सिर्फ़ सियासत है, कोई फ़लसफ़ा नहीं।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: परस्तार: पूजक, अनुयायी; जबीं: मस्तक; अना: अति-स्वाभिमान; मुद्दआ: विषय;
रंजिश: शत्रुता का भाव; फ़लसफ़ा: दार्शनिक सिद्धांत ।
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