कभी तो मेरी तमन्ना मेरे क़रीब आए
के: वो: जो आएं ख़ुदारा मेरा नसीब आए
बड़ा सुकूं था के: आख़िर हुए तेरे बीमार
मिज़ाजपुर्सी को क्यूं कर मेरे रक़ीब आए
मुशायरों में कभी एक भी मिसरा न उठा
उठे जहां से तो मातम को सौ अदीब आए
ये: आख़िरत का सफ़र और ये: अकेली जां
के: साथ आए, कोई तो मेरा हबीब आए
बहार आए चमन में तो इस तरह आए
ख़ैर-मक़दम को नग़म:- ए - 'अंदलीब आए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुदारा : ख़ुदा के वास्ते; मिजाजपुर्सी: हाल-चाल जानना; रक़ीब: शत्रु, प्रतिद्वंद्वी; मिसरा उठाना: शायर को
प्रोत्साहित करने के लिए श्रोताओं द्वारा शे'र की प्रथम पंक्ति को दोहराना; अदीब: साहित्यकार; हबीब: प्रिय;
ख़ैर-मक़दम : स्वागत, अगवानी; नग़म:- ए - 'अंदलीब : बुलबुल का गीत।
के: वो: जो आएं ख़ुदारा मेरा नसीब आए
बड़ा सुकूं था के: आख़िर हुए तेरे बीमार
मिज़ाजपुर्सी को क्यूं कर मेरे रक़ीब आए
मुशायरों में कभी एक भी मिसरा न उठा
उठे जहां से तो मातम को सौ अदीब आए
ये: आख़िरत का सफ़र और ये: अकेली जां
के: साथ आए, कोई तो मेरा हबीब आए
बहार आए चमन में तो इस तरह आए
ख़ैर-मक़दम को नग़म:- ए - 'अंदलीब आए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुदारा : ख़ुदा के वास्ते; मिजाजपुर्सी: हाल-चाल जानना; रक़ीब: शत्रु, प्रतिद्वंद्वी; मिसरा उठाना: शायर को
प्रोत्साहित करने के लिए श्रोताओं द्वारा शे'र की प्रथम पंक्ति को दोहराना; अदीब: साहित्यकार; हबीब: प्रिय;
ख़ैर-मक़दम : स्वागत, अगवानी; नग़म:- ए - 'अंदलीब : बुलबुल का गीत।
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