ग़ालिबन, हम भी ग़ज़ल कहते हैं
ये: अलग बात के: चुप रहते हैं
उनके कूचे में अदब से चलियो
हम उन्हें अपना ख़ुदा कहते हैं
हाल में हैं के: पलक भारी है
कौन कहता है, रंज सहते हैं
हमने जिस शै को ख़ुदा माना है
उसकी रग़-रग़ में हमीं बहते हैं
जब भी चमके है कभी तेग़-ए-अवाम
हाकिमों के तिलिस्म ढहते हैं।
( 2006/2013 )
-सुरेश स्वप्निल
ये: अलग बात के: चुप रहते हैं
उनके कूचे में अदब से चलियो
हम उन्हें अपना ख़ुदा कहते हैं
हाल में हैं के: पलक भारी है
कौन कहता है, रंज सहते हैं
हमने जिस शै को ख़ुदा माना है
उसकी रग़-रग़ में हमीं बहते हैं
जब भी चमके है कभी तेग़-ए-अवाम
हाकिमों के तिलिस्म ढहते हैं।
( 2006/2013 )
-सुरेश स्वप्निल
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