जब भी घर से निकल के आते हैं
सर बचा के, संभल के आते हैं
दोस्त-दुश्मन में फ़र्क़ मुश्किल है
लोग चेहरे बदल के आते हैं
चांद करवट बदल रहा होगा
आओ, छत पे टहल के आते हैं
ये: सियासत नहीं तो फिर क्या है
वो: मेरे घर मचल के आते हैं
मोमिनो ! आ रहो, वुज़ू कर लो
हम अमामा बदल के आते हैं।
( 2012 )
- सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मोमिन: आस्तिक, आस्थावान; वुज़ू: नमाज़ पढ़ने के लिए देह-शुद्धि;
अमामा: नमाज़ पढ़ाने के लिए इमाम साहब द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र।
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