ख़ुदा ही जाने के: अब इस शहर का क्या होगा
हमारे दिल न मिलेंगे तो हादसा होगा
रहेंगे अपनी नज़र में सनम क़यामत तक
मकां करेंगे जहां , उनका रास्ता होगा
उड़ा-उड़ा सा फिरे है सनम कई दिन से
मेरे जुनूं पे ऐतबार आ गया होगा
फ़रिश्ते उसकी वफ़ा को सलाम करते हैं
यक़ीं नहीं के: वो: इस क़द्र पारसा होगा
अज़ां के क़ब्ल तेरा नाम आ गया लब पे
ज़ुरूर तू भी हमें याद कर रहा होगा
मेरी वफ़ा की वो: क़समें उठाए जाता है
सनम नहीं तो यक़ीनन मेरा ख़ुदा होगा !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मकां करना: क़ब्र अथवा समाधि बनवाना; जुनूं: आवेग; पारसा: पवित्रात्मा; क़ब्ल: पूर्व।
हमारे दिल न मिलेंगे तो हादसा होगा
रहेंगे अपनी नज़र में सनम क़यामत तक
मकां करेंगे जहां , उनका रास्ता होगा
उड़ा-उड़ा सा फिरे है सनम कई दिन से
मेरे जुनूं पे ऐतबार आ गया होगा
फ़रिश्ते उसकी वफ़ा को सलाम करते हैं
यक़ीं नहीं के: वो: इस क़द्र पारसा होगा
अज़ां के क़ब्ल तेरा नाम आ गया लब पे
ज़ुरूर तू भी हमें याद कर रहा होगा
मेरी वफ़ा की वो: क़समें उठाए जाता है
सनम नहीं तो यक़ीनन मेरा ख़ुदा होगा !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मकां करना: क़ब्र अथवा समाधि बनवाना; जुनूं: आवेग; पारसा: पवित्रात्मा; क़ब्ल: पूर्व।
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