कभी मेरे दिल पे नज़र करो
हो क़ुबूल तो यहीं घर करो
मुझे चांदनी की तलाश है
ज़रा रुख़ उधर से इधर करो
मैं नज़र से पी के बहक गया
कोई दुश्मनों को ख़बर करो
रहे याद लफ़्ज़-ए-वफ़ा तुम्हें
कोई वादा हमसे अगर करो
ग़म-ए-शब-ए-हिज्र भुला सकूं
ऐ दुआ-ए-दोस्त, असर करो
मुझे छू के बख़्श दी ज़िंदगी
ये: कमाल शाम-ओ-सहर करो
है मेरा मज़ार भी मुन्तज़िर
कभी सामने से गुज़र करो।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रुख़: चेहरा ; लफ़्ज़-ए-वफ़ा : निर्वाह का शब्द; ग़म-ए-शब-ए-हिज्र : वियोग
की रात का दुःख ;[ मुझे छू के ..यहाँ श्री राम और अहिल्या के प्रसंग की ओर
संकेत, मिथक -अनुसार श्री राम ने पत्थर की मूर्त्ति बनी अहिल्या को अपने
पांव से छू कर पुनः जीवित कर दिया था।]
हो क़ुबूल तो यहीं घर करो
मुझे चांदनी की तलाश है
ज़रा रुख़ उधर से इधर करो
मैं नज़र से पी के बहक गया
कोई दुश्मनों को ख़बर करो
रहे याद लफ़्ज़-ए-वफ़ा तुम्हें
कोई वादा हमसे अगर करो
ग़म-ए-शब-ए-हिज्र भुला सकूं
ऐ दुआ-ए-दोस्त, असर करो
मुझे छू के बख़्श दी ज़िंदगी
ये: कमाल शाम-ओ-सहर करो
है मेरा मज़ार भी मुन्तज़िर
कभी सामने से गुज़र करो।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रुख़: चेहरा ; लफ़्ज़-ए-वफ़ा : निर्वाह का शब्द; ग़म-ए-शब-ए-हिज्र : वियोग
की रात का दुःख ;[ मुझे छू के ..यहाँ श्री राम और अहिल्या के प्रसंग की ओर
संकेत, मिथक -अनुसार श्री राम ने पत्थर की मूर्त्ति बनी अहिल्या को अपने
पांव से छू कर पुनः जीवित कर दिया था।]
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