यूँ तो तेरे ख़्याल ने दीवाना कर दिया
ग़ैरत ने सब्र-ओ-ज़ब्त का पैमाना कर दिया
सीना टटोलते हैं के: कुछ तो धड़क उठे
दिल तो किसी फ़रेब को नज़राना कर दिया
सदमों की राह-ओ-रफ़्त से घबरा चुके हैं हम
दुनिया ने ये: सुख़न हमें शाम-ओ-सहर दिया
इतनी दुआ थी साथ तेरे वक़्त मिल सके
दे तो दिया ख़ुदा ने मगर मुख़्तसर दिया
दिल को संभालिये के: हम कहते हैं अब ग़ज़ल
शिकवा न कीजिए के: फिर मीठा ज़हर दिया
उसकी नवाज़िशें हैं के: सज्दे से जब उठे
अपने सिवा हर एक से बेगाना कर दिया।
( 2011 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ग़ैरत: स्वाभिमान; सब्र-ओ-ज़ब्त: धैर्य और संयम; फ़रेब: विभ्रम;
नज़राना: उपहार; राह-ओ-रफ़्त: दिशा और वेग; सुख़न:सृजन,मन
बहलाने का साधन; मुख़्तसर: संक्षिप्त, बहुत कम;नवाज़िशें :कृपा
( बहु .); सज्दा: साष्टांग प्रणाम; बेगाना: पराया।
ग़ैरत ने सब्र-ओ-ज़ब्त का पैमाना कर दिया
सीना टटोलते हैं के: कुछ तो धड़क उठे
दिल तो किसी फ़रेब को नज़राना कर दिया
सदमों की राह-ओ-रफ़्त से घबरा चुके हैं हम
दुनिया ने ये: सुख़न हमें शाम-ओ-सहर दिया
इतनी दुआ थी साथ तेरे वक़्त मिल सके
दे तो दिया ख़ुदा ने मगर मुख़्तसर दिया
दिल को संभालिये के: हम कहते हैं अब ग़ज़ल
शिकवा न कीजिए के: फिर मीठा ज़हर दिया
उसकी नवाज़िशें हैं के: सज्दे से जब उठे
अपने सिवा हर एक से बेगाना कर दिया।
( 2011 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ग़ैरत: स्वाभिमान; सब्र-ओ-ज़ब्त: धैर्य और संयम; फ़रेब: विभ्रम;
नज़राना: उपहार; राह-ओ-रफ़्त: दिशा और वेग; सुख़न:सृजन,मन
बहलाने का साधन; मुख़्तसर: संक्षिप्त, बहुत कम;नवाज़िशें :कृपा
( बहु .); सज्दा: साष्टांग प्रणाम; बेगाना: पराया।
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