बहुत उमस है यहां , दूर टहल आएं चलो
के: झूठ ही सही, कुछ देर बहल आएं चलो
किसी की लाश है, टकराई है जो पांवों से
गिरा है ख़ून बहुत, बच के निकल जाएं चलो
हमें तो शैख़ समझते हैं इस गली के लोग
भले ही पी है बहुत, कुछ तो संभल जाएं चलो
गुनाह रात के रंगत को स्याह कर देंगे
किसी सुनार की भट्टी में उजल आएं चलो
शहर है बंद शब-ए-तार की हिमायत में
ये: कल की पूनमी पोशाक़ बदल आएं चलो।
( 1978 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शैख़ : अति-धार्मिक; शब-ए-तार : अमावस्या की रात; हिमायत : समर्थन।
के: झूठ ही सही, कुछ देर बहल आएं चलो
किसी की लाश है, टकराई है जो पांवों से
गिरा है ख़ून बहुत, बच के निकल जाएं चलो
हमें तो शैख़ समझते हैं इस गली के लोग
भले ही पी है बहुत, कुछ तो संभल जाएं चलो
गुनाह रात के रंगत को स्याह कर देंगे
किसी सुनार की भट्टी में उजल आएं चलो
शहर है बंद शब-ए-तार की हिमायत में
ये: कल की पूनमी पोशाक़ बदल आएं चलो।
( 1978 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: शैख़ : अति-धार्मिक; शब-ए-तार : अमावस्या की रात; हिमायत : समर्थन।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें