ऐसा क्यूं नहीं होता, ख़्वाब में वो: आ जाएं
हम पे मेहरबां हो कर , रूह में समा जाएं
याद है के: आंखों से, आंच-सी बरसती है
सहरा-ए-तमन्ना पे , अब्र बन के छा जाएं
हम पे हंस रहे हैं ये:, रंग-ओ-बू के पैमाने
काश ! इन बहारों में , हम सुकून पा जाएं
वो: ही वो: समाए हैं , सांस बन के सीने में
अब तो इस ज़माने को , तअर्रुफ़ करा जाएं
बाद वक़्त-ए-मग़रिब फिर, आसमां मुनव्वर है
ये: फ़रेब क्यूं कर हो , आप हैं तो आ जाएं।
( 2008 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सहरा-ए-तमन्ना : इच्छाओं का मरुस्थल , अब्र : मेघ; रंग-ओ-बू के पैमाने : रंग और
सुगंध के मानक; तअर्रुफ़ : परिचय; बाद वक़्त-ए-मग़रिब : सूर्यास्त होने के बाद भी;
मुनव्वर : प्रकाशित; फ़रेब : मायाजाल
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