हम के: तन्हाइयों में जीते हैं
रोज़ रुस्वाइयों में जीते हैं
दोस्त वो: हो न सकेंगे अपने
वो: तो अमराइयों में जीते हैं
आप क्या जानें,आब-ए-.खूं क्या है
आप पुरवाइयों में जीते हैं
लौट के आइये हमारे क़रीब
क्यूं तमाशाइयों में जीते हैं ?
वो: जो दुनिया से कर गए पर्द:
दिल की गहराइयों में जीते हैं।
हम के: तन्हाइयों में जीते हैं ....
( 2013)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रुस्वाई: तिरस्कार, अपमान; आब-ए-खूं : ख़ून का पानी होना, भावान्तर से पसीना;
तमाशाई: प्रदर्शन करने वाले, बनावटी लोग; पर्द: करना: दिवंगत होना।
रोज़ रुस्वाइयों में जीते हैं
दोस्त वो: हो न सकेंगे अपने
वो: तो अमराइयों में जीते हैं
आप क्या जानें,आब-ए-.खूं क्या है
आप पुरवाइयों में जीते हैं
लौट के आइये हमारे क़रीब
क्यूं तमाशाइयों में जीते हैं ?
वो: जो दुनिया से कर गए पर्द:
दिल की गहराइयों में जीते हैं।
हम के: तन्हाइयों में जीते हैं ....
( 2013)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रुस्वाई: तिरस्कार, अपमान; आब-ए-खूं : ख़ून का पानी होना, भावान्तर से पसीना;
तमाशाई: प्रदर्शन करने वाले, बनावटी लोग; पर्द: करना: दिवंगत होना।
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