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सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

... आब-ए-.खूं क्या है !

हम  के:   तन्हाइयों  में जीते  हैं
रोज़    रुस्वाइयों   में    जीते  हैं

दोस्त  वो:   हो  न  सकेंगे  अपने
वो:  तो    अमराइयों  में  जीते  हैं

आप क्या जानें,आब-ए-.खूं क्या है
आप   पुरवाइयों   में    जीते  हैं

लौट  के  आइये    हमारे  क़रीब
क्यूं  तमाशाइयों  में    जीते  हैं ?

वो:  जो  दुनिया से कर गए   पर्द:
दिल  की  गहराइयों में  जीते  हैं।

हम  के: तन्हाइयों में जीते हैं ....

                                                 ( 2013)

                                            -सुरेश स्वप्निल 

शब्दार्थ: रुस्वाई: तिरस्कार, अपमान; आब-ए-खूं : ख़ून का पानी होना, भावान्तर से पसीना;
               तमाशाई: प्रदर्शन करने वाले, बनावटी लोग; पर्द: करना: दिवंगत होना।    

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