आदाब अर्ज़ , दोस्तों।
तहज़ीब-ओ-अदब और उन्स-ओ-ख़ुलूस के शहर हैदराबाद में परसों यानी जुमेरात, 21 फ़रवरी, 2013 की शाम चंद सरफिरे , जाहिल दहशतग़र्दों ने हैवानियत का जो वाहियात खेल खेला, उसे याद कर के रूह अभी तक थर्रा रही है। आप पूछ सकते हैं के: कल मैं कहाँ था ? जायज़ सवाल है। मैं कल दरअसल अपने आपे में तो क़तई नहीं था। कंप्यूटर पर बैठा तो बार-बार टी .वी . पर देखे मंज़र याद आते रहे। काफ़ी देर तक जब कुछ भी समझ में नहीं आया तो जो काग़ज़ सामने पड़ा था, उसी को आपके सामने पेश कर दिया।
शहर हैदराबाद के अवाम और वहां के अपने तमाम दोस्त-अहबाब की सेहत और बहबूदी को लेकर वाक़ई बेहद फ़िक्रमंद हूँ। उम्मीद करता हूँ के: आप सब ख़ैरियत से होंगे। जो अफ़राद इस हादसे में हलाक़ हुए, अल्लाह उन्हें जन्नत बख़्शे और जो ज़ख़्मी हुए वो: जल्द-अज़-जल्द सेहतयाब हों, इसी दुआ के साथ चंद अश'आर आपके पेश-ए-नज़र हैं। इन्हें ग़ज़ल मानें या मेरी तरफ़ से ख़ेराज-ए-अक़ीदत, यह आप पर छोड़ता हूँ।
ख़ून-आलूद: ज़मीं को देखिए
और अपनी आस्तीं को देखिए
दुश्मन-ए-इंसानियत है आस-पास
ग़ौर से हर हमनशीं को देखिए
हर जगह खुल के मज़म्मत कीजिए
चश्म-ए-बेवा नाज़नीं को देखिए
आज हर शाइर हुआ है नौह:गर
मुल्क के ज़ख़्मी यक़ीं को देखिए
सोचिये, क्या फ़र्ज़ है क्या शिर्क है
मोमिनो! दाग़-ए-जबीं को देखिए
ख़ून-आलूद: ज़मीं को देखिए
और अपनी आस्तीं को देखिए।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ून-आलूद: ख़ून में डूबी; हमनशीं: साथी; मज़म्मत: निंदा; चश्म-ए-बेवा नाज़नीं: युवा विधवा की आँखें;
नौह:गर: शोक-गीत रचने वाला; ज़ख़्मी यक़ीं: घायल विश्वास; शिर्क: ईश्वर-द्रोह; दाग़-ए-जबीं:नियमित रूप
से नमाज़ पढ़ने वालों के माथे पर पड़ने वाला दाग़।
तहज़ीब-ओ-अदब और उन्स-ओ-ख़ुलूस के शहर हैदराबाद में परसों यानी जुमेरात, 21 फ़रवरी, 2013 की शाम चंद सरफिरे , जाहिल दहशतग़र्दों ने हैवानियत का जो वाहियात खेल खेला, उसे याद कर के रूह अभी तक थर्रा रही है। आप पूछ सकते हैं के: कल मैं कहाँ था ? जायज़ सवाल है। मैं कल दरअसल अपने आपे में तो क़तई नहीं था। कंप्यूटर पर बैठा तो बार-बार टी .वी . पर देखे मंज़र याद आते रहे। काफ़ी देर तक जब कुछ भी समझ में नहीं आया तो जो काग़ज़ सामने पड़ा था, उसी को आपके सामने पेश कर दिया।
शहर हैदराबाद के अवाम और वहां के अपने तमाम दोस्त-अहबाब की सेहत और बहबूदी को लेकर वाक़ई बेहद फ़िक्रमंद हूँ। उम्मीद करता हूँ के: आप सब ख़ैरियत से होंगे। जो अफ़राद इस हादसे में हलाक़ हुए, अल्लाह उन्हें जन्नत बख़्शे और जो ज़ख़्मी हुए वो: जल्द-अज़-जल्द सेहतयाब हों, इसी दुआ के साथ चंद अश'आर आपके पेश-ए-नज़र हैं। इन्हें ग़ज़ल मानें या मेरी तरफ़ से ख़ेराज-ए-अक़ीदत, यह आप पर छोड़ता हूँ।
ख़ून-आलूद: ज़मीं को देखिए
और अपनी आस्तीं को देखिए
दुश्मन-ए-इंसानियत है आस-पास
ग़ौर से हर हमनशीं को देखिए
हर जगह खुल के मज़म्मत कीजिए
चश्म-ए-बेवा नाज़नीं को देखिए
आज हर शाइर हुआ है नौह:गर
मुल्क के ज़ख़्मी यक़ीं को देखिए
सोचिये, क्या फ़र्ज़ है क्या शिर्क है
मोमिनो! दाग़-ए-जबीं को देखिए
ख़ून-आलूद: ज़मीं को देखिए
और अपनी आस्तीं को देखिए।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ून-आलूद: ख़ून में डूबी; हमनशीं: साथी; मज़म्मत: निंदा; चश्म-ए-बेवा नाज़नीं: युवा विधवा की आँखें;
नौह:गर: शोक-गीत रचने वाला; ज़ख़्मी यक़ीं: घायल विश्वास; शिर्क: ईश्वर-द्रोह; दाग़-ए-जबीं:नियमित रूप
से नमाज़ पढ़ने वालों के माथे पर पड़ने वाला दाग़।
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