चल ही जाती है ज़िन्दगी तेरे करम के बग़ैर
अक़ीदतों के सहारे, किसी वहम के बग़ैर
अगर है जुर्म हक़ की बात तेरी महफ़िल में
सज़ा सुना दे मुझे बे-हिचक, रहम के बग़ैर
मेरी तक़दीर में शायद वो: लिख नहीं पाया
के: गुज़र जाए कोई रात रंज-ओ-ग़म के बग़ैर
इस क़दर ख़ैर-ख़्वाह आ रहे हैं पुरसे को
के: शब-ए-हिज्र न गुज़रेगी पेच-ओ-ख़म के बग़ैर
बुरा हो रस्म-ए-ग़म-ए-रोज़गार-ए-दुनिया का
तमाम उम्र तड़पते रहे सनम के बग़ैर।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: करम: कृपा; अक़ीदत: आस्था; वहम: भ्रम; जुर्म: अपराध; हक़: न्याय;
रहम: दया; तक़दीर: भाग्य; रंज-ओ-ग़म: खेद और शोक; ख़ैर-ख़्वाह:
शुभ-चिन्तक; पुरसा: शोक-संवेदना; शब-ए-हिज्र: वियोग की रात;
पेच-ओ-ख़म: घुमाव और मोड़; रस्म-ए-ग़म-ए-रोज़गार-ए-दुनिया:
सांसारिकता के दुखों की प्रथा।
अक़ीदतों के सहारे, किसी वहम के बग़ैर
अगर है जुर्म हक़ की बात तेरी महफ़िल में
सज़ा सुना दे मुझे बे-हिचक, रहम के बग़ैर
मेरी तक़दीर में शायद वो: लिख नहीं पाया
के: गुज़र जाए कोई रात रंज-ओ-ग़म के बग़ैर
इस क़दर ख़ैर-ख़्वाह आ रहे हैं पुरसे को
के: शब-ए-हिज्र न गुज़रेगी पेच-ओ-ख़म के बग़ैर
बुरा हो रस्म-ए-ग़म-ए-रोज़गार-ए-दुनिया का
तमाम उम्र तड़पते रहे सनम के बग़ैर।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: करम: कृपा; अक़ीदत: आस्था; वहम: भ्रम; जुर्म: अपराध; हक़: न्याय;
रहम: दया; तक़दीर: भाग्य; रंज-ओ-ग़म: खेद और शोक; ख़ैर-ख़्वाह:
शुभ-चिन्तक; पुरसा: शोक-संवेदना; शब-ए-हिज्र: वियोग की रात;
पेच-ओ-ख़म: घुमाव और मोड़; रस्म-ए-ग़म-ए-रोज़गार-ए-दुनिया:
सांसारिकता के दुखों की प्रथा।
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