आ के: अम्बर में अश्क बोते हैं
हाकिमों के गुनाह धोते हैं
भूख दिल्ली में मुद्दआ ही नहीं
तज़किरे आंकड़ों पे होते हैं
अह्ल -ए-दिल की सलाहियत वल्लाह
हार के कामरान होते हैं
दिलकुशी पे न मर्सिया पढ़िए
मोजज़े मुश्किलों से होते हैं
इश्क़ सूरत बदल न दे अपनी
हर घड़ी आईने संजोते हैं
हम के: दिल की लगी को रोते हैं
आप क्यूँ दाएं-बाएं होते हैं ?
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हाकिम: शासक; तज़्किरा: चर्चा, विचार-विमर्श, दिलकुशी: दिल का वध;
मर्सिया: शोक-गीत; मोजज़ा: चमत्कार; अह्ल -ए-दिल: दिल वाले; सलाहियत:
समझदारी, प्रतिभा; कामरान: विजयी।
हाकिमों के गुनाह धोते हैं
भूख दिल्ली में मुद्दआ ही नहीं
तज़किरे आंकड़ों पे होते हैं
अह्ल -ए-दिल की सलाहियत वल्लाह
हार के कामरान होते हैं
दिलकुशी पे न मर्सिया पढ़िए
मोजज़े मुश्किलों से होते हैं
इश्क़ सूरत बदल न दे अपनी
हर घड़ी आईने संजोते हैं
हम के: दिल की लगी को रोते हैं
आप क्यूँ दाएं-बाएं होते हैं ?
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हाकिम: शासक; तज़्किरा: चर्चा, विचार-विमर्श, दिलकुशी: दिल का वध;
मर्सिया: शोक-गीत; मोजज़ा: चमत्कार; अह्ल -ए-दिल: दिल वाले; सलाहियत:
समझदारी, प्रतिभा; कामरान: विजयी।
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