कभी मूसा, कभी मंसूर हैं हम
शम्स हैं और कोह-ए-तूर हैं हम
ख़ल्क़ तेरा, ख़ुदाई तेरी है
तेरे अन्वार से मग़रूर हैं हम
हम्द पढ़ते हैं , फ़ैज़ पाते हैं
आपके नाम से मशहूर हैं हम
तेरे सज्दे में हैं, के: हम ही हम
हम कहाँ हैं जो तुझसे दूर हैं हम
यूँ तो कोई गुनह कभी न किया
तेरे आशिक़ मगर ज़रूर हैं हम।
( 2007 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मूसा: हज़रत मूसा स .अ ., इस्लाम के द्वैत-वादी दार्शनिक;
मंसूर: हज़ . मंसूर स . अ ., इस्लाम के अद्वैत-वादी दार्शनिक;
शम्स: सूर्य ; कोह-ए-तूर: मिथकीय पर्वत, माना जाता है कि इसी
पर्वत पर हज़रत मूसा स .अ . के समक्ष अल्लाह प्रकट हुए थे;
ख़ल्क़: सृष्टि; ख़ुदाई: ईश्वर का साम्राज्य; अन्वार: प्रकाश; मग़रूर:
गर्वोन्मत्त; हम्द: भक्ति-गीत; फ़ैज़: सम्मान; सज्दा: नत-मस्तक,
शरणागत:
शम्स हैं और कोह-ए-तूर हैं हम
ख़ल्क़ तेरा, ख़ुदाई तेरी है
तेरे अन्वार से मग़रूर हैं हम
हम्द पढ़ते हैं , फ़ैज़ पाते हैं
आपके नाम से मशहूर हैं हम
तेरे सज्दे में हैं, के: हम ही हम
हम कहाँ हैं जो तुझसे दूर हैं हम
यूँ तो कोई गुनह कभी न किया
तेरे आशिक़ मगर ज़रूर हैं हम।
( 2007 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मूसा: हज़रत मूसा स .अ ., इस्लाम के द्वैत-वादी दार्शनिक;
मंसूर: हज़ . मंसूर स . अ ., इस्लाम के अद्वैत-वादी दार्शनिक;
शम्स: सूर्य ; कोह-ए-तूर: मिथकीय पर्वत, माना जाता है कि इसी
पर्वत पर हज़रत मूसा स .अ . के समक्ष अल्लाह प्रकट हुए थे;
ख़ल्क़: सृष्टि; ख़ुदाई: ईश्वर का साम्राज्य; अन्वार: प्रकाश; मग़रूर:
गर्वोन्मत्त; हम्द: भक्ति-गीत; फ़ैज़: सम्मान; सज्दा: नत-मस्तक,
शरणागत:
माना के गुनहगार हम है
जवाब देंहटाएंपर तेरे तलबगार नही है
तेरी खामोशीयों का सबब है
चुनाता हमें हर वो लब्ज जो है
जो मेरे दिल के करीब है
जो तेरे भी दिल के करीब है
जाने कीस ग़म मे मसरूफ है
फीर भी दोनो खामोश है
देखते जमाने की रीवायते है
जाने क्या तहजीब सीखाते है
अकसर अंजाम यही होता है
कहानी में हीज्र का भी इक मौसम होता है