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शनिवार, 26 जनवरी 2013

' हाँ, S S, अच्छा है'

अब्र -ओ-हब्स  हैं, मौसम  का  निशां  अच्छा  है
सहरा-ए-दिल  पे  बरसने  का  बयां  अच्छा  है

जब  तलक  हाथ  में  अख़बार  नहीं  आ  जाता
हर  तरफ़  चैन-ओ-अमन  है, ये: गुमां  अच्छा  है

जिनकी  आँखों  में  बसा  करती  है  ख़ुशबू-ए-वफ़ा
उनके  अनवार  से  हर  सिम्त  जहाँ  अच्छा  है

मुतमइन  हैं    के: सहर  आएगी    हर  रात के  बाद
ज़िया-ए-शौक़   में    जुगनू    का   बयां   अच्छा  है

मुद्दतों   बाद      इक    उस्ताद     हुए    हैं     ग़ालिब
मेरे   हर   शेर   पे    कहते  हैं,   ' हाँ, S S, अच्छा  है'

उनके  अहबाब  की  फ़ेहरिस्त  में  हम  हैं   के:  नहीं
जज़्ब: - ए- इश्क़   के   हक़  में    ये: धुवां  अच्छा  है

हम भी  हो  आये  हैं  उस  मुल्क-ए-अदम के मेहमां
माशाअल्लाह,    हसीनों   का    मकां     अच्छा  है।

                                                                       ( 2006 )

                                                          - सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ: अब्र-ओ-हब्स : बादल और उमस; सहरा: मरुस्थल; चैन-ओ-अमन: सुख-शांति; 
              गुमां:भ्रम ; ख़ुशबू-ए-वफ़ा: आस्था की सुगंध; अनवार: प्रकाश; सिम्त:ओर; मुतमइन: 
              आश्वस्त; सहर: उषा; ज़िया-ए-शौक़ : लगन की लौ; अहबाब: मित्र ( बहु .); फ़ेहरिस्त :
              सूची ; जज़्ब:-ए-इश्क़ : प्रेम की भावना ; धुवां: धुआं, अस्पष्टता; मुल्क-ए-अदम : ईश्वर 
              का देश; हसीनों  का मकां : प्रिय का घर, यहाँ ईश्वर के घर से आशयित।

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