चार:गर आए कई और दवा देते रहे
हम के: बस अपने ही ज़ख्मों को हवा देते रहे
मुन्तज़िर थे के: चले आएं वो: जीते जी ही
रस्म-ए-मय्यत पे वो: जीने की दुआ देते रहे
अब इसे कहिये भी क्या और सियासत के सिवा
के: हमें जुर्म -ए -इबादत की सज़ा देते रहे
उनके सीने में कभी नक़्श हमारा उभरे
उनके हर ज़ुल्म पे हंस-हंस के रज़ा देते रहे
जिन्स- ए -हस्सास गुनहगार न मानी जावे
दुश्मन-ए-वक़्त को बेसूद वफ़ा देते रहे
बाँध पूरा न हुआ और शहर डूब गया
लोग बिछड़ों को पहाड़ों से सदा देते रहे
क्या अजब है के: वो: अपना न बना लें हमको
शब्-ब-शब ख़्वाब में आ-आ के सला देते रहे।
( 2007 )
टिहरी-बाँध पूरा होने पर
_सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: चार:गर : उपचार करने वाले; मुन्तज़िर: प्रतीक्षारत; रस्म-ए-मय्यत: अंत्येष्टि-क्रिया;
जिन्स-ए-हस्सास : संवेदनशील लोग; बेसूद: नि:स्वार्थ ; रज़ा: सहमति ; सदा: आवाज़ ;
शब्-ब-शब: रात के रात; सला : निमंत्रण
हम के: बस अपने ही ज़ख्मों को हवा देते रहे
मुन्तज़िर थे के: चले आएं वो: जीते जी ही
रस्म-ए-मय्यत पे वो: जीने की दुआ देते रहे
अब इसे कहिये भी क्या और सियासत के सिवा
के: हमें जुर्म -ए -इबादत की सज़ा देते रहे
उनके सीने में कभी नक़्श हमारा उभरे
उनके हर ज़ुल्म पे हंस-हंस के रज़ा देते रहे
जिन्स- ए -हस्सास गुनहगार न मानी जावे
दुश्मन-ए-वक़्त को बेसूद वफ़ा देते रहे
बाँध पूरा न हुआ और शहर डूब गया
लोग बिछड़ों को पहाड़ों से सदा देते रहे
क्या अजब है के: वो: अपना न बना लें हमको
शब्-ब-शब ख़्वाब में आ-आ के सला देते रहे।
( 2007 )
टिहरी-बाँध पूरा होने पर
_सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: चार:गर : उपचार करने वाले; मुन्तज़िर: प्रतीक्षारत; रस्म-ए-मय्यत: अंत्येष्टि-क्रिया;
जिन्स-ए-हस्सास : संवेदनशील लोग; बेसूद: नि:स्वार्थ ; रज़ा: सहमति ; सदा: आवाज़ ;
शब्-ब-शब: रात के रात; सला : निमंत्रण
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