तंज़ कर-कर के मै पिलाते हैं
हम बुरे हैं तो क्यूँ बुलाते हैं?
आपके शौक़ ही निराले हैं
दिल लगाते हैं, दिल जलाते हैं
ख़्वाब में बिन - बुलाए आते हैं
दिन में हर बात भूल जाते हैं
तेरी आवाज़ की आहट पा के
हम ग़म-ए-हिज्र भूल जाते हैं
शादमानी हमारी सिफ़अत है
आप कहिये, तो रूठ जाते हैं
अर्श उनको सलाम करता है
जो तेरे दिल में घर बनाते हैं।
( 2012 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तंज़: व्यंग्य; मै : मद्य ; ग़म-ए-हिज्र : वियोग के दुःख ;
शादमानी : ख़ुशमिजाज़ी ; सिफ़अत : विशिष्टता,
अर्श: आकाश
हम बुरे हैं तो क्यूँ बुलाते हैं?
आपके शौक़ ही निराले हैं
दिल लगाते हैं, दिल जलाते हैं
ख़्वाब में बिन - बुलाए आते हैं
दिन में हर बात भूल जाते हैं
तेरी आवाज़ की आहट पा के
हम ग़म-ए-हिज्र भूल जाते हैं
शादमानी हमारी सिफ़अत है
आप कहिये, तो रूठ जाते हैं
अर्श उनको सलाम करता है
जो तेरे दिल में घर बनाते हैं।
( 2012 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तंज़: व्यंग्य; मै : मद्य ; ग़म-ए-हिज्र : वियोग के दुःख ;
शादमानी : ख़ुशमिजाज़ी ; सिफ़अत : विशिष्टता,
अर्श: आकाश
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