उनसे जब भी कभी निगाह मिले
मुतमईं हैं के: दिल को राह मिले
चारागर , बस यही गुज़ारिश है
दाग़े-दिल पर कोई सलाह मिले
क़ैसो-फ़रहाद , राँझा-ओ-महिवाल
पीरो-मुर्शिद सभी तबाह मिले
मुद्दतों से खड़े हैं राहों में
काश ! कोई शरीक़े-राह मिले
साहिबे-नूर दो घड़ी ठहरें
ढूंढते हैं , कोई गवाह मिले
बह्रे-मूसा में कह रहे हैं ग़ज़ल
कूए-रौशन में अब पनाह मिले।
(2004)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : मुतमईं : आश्वस्त ; चारागर : उपचारक ; पीर-ओ-मुर्शिद : अल्लाह तक
पहुंचे हुए, साधु-संत,शरीक़-ए-राह : हमसफ़र, सहयात्री ; साहिब-ए-नूर :
अनंत प्रकाश के स्वामी, अल्लाह;बह्र-ए-मूसा : मूसा के छंद में , हज़रत
मूसा इस्लाम के पैग़म्बरों में से एक थे , किम्वदंती है कि उनके आव्हान
पर अल्लाह कोह -ए - तूर यानि अँधेरे के पर्वत पर प्रकट हुए किन्तु अल्लाह
के अनंत प्रकाशमय स्वरूप के आगे उनकी आँखें बंद हो गईं और वे अल्लाह
के सामने होते हुए भी कुछ नहीं देख सके ; कू-ए-रौशन : अनंत-प्रकाश की
गली अर्थात, अल्लाह की गली।
मुतमईं हैं के: दिल को राह मिले
चारागर , बस यही गुज़ारिश है
दाग़े-दिल पर कोई सलाह मिले
क़ैसो-फ़रहाद , राँझा-ओ-महिवाल
पीरो-मुर्शिद सभी तबाह मिले
मुद्दतों से खड़े हैं राहों में
काश ! कोई शरीक़े-राह मिले
साहिबे-नूर दो घड़ी ठहरें
ढूंढते हैं , कोई गवाह मिले
बह्रे-मूसा में कह रहे हैं ग़ज़ल
कूए-रौशन में अब पनाह मिले।
(2004)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : मुतमईं : आश्वस्त ; चारागर : उपचारक ; पीर-ओ-मुर्शिद : अल्लाह तक
पहुंचे हुए, साधु-संत,शरीक़-ए-राह : हमसफ़र, सहयात्री ; साहिब-ए-नूर :
अनंत प्रकाश के स्वामी, अल्लाह;बह्र-ए-मूसा : मूसा के छंद में , हज़रत
मूसा इस्लाम के पैग़म्बरों में से एक थे , किम्वदंती है कि उनके आव्हान
पर अल्लाह कोह -ए - तूर यानि अँधेरे के पर्वत पर प्रकट हुए किन्तु अल्लाह
के अनंत प्रकाशमय स्वरूप के आगे उनकी आँखें बंद हो गईं और वे अल्लाह
के सामने होते हुए भी कुछ नहीं देख सके ; कू-ए-रौशन : अनंत-प्रकाश की
गली अर्थात, अल्लाह की गली।
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