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रविवार, 6 मार्च 2016

बंदगी का गुनाह...

आज  बिछड़े  ख़याल  घर  आए
अनगिनत  ज़र्द  ख़्वाब  बर  आए

गुमशुदा  यार  गुमशुदा  यादें
लौट  आए  कि  ज़ख़्म  भर  आए

लोग  किरदार  पर  करेंगे  शक़
आप  गर  होश  में  नज़र  आए

काश ! दिल  हो  उदास  महफ़िल  में
काश ! फिर  आपकी  ख़बर  आए

क्या  हुआ  शाह  के  इरादों  का
रिज़्क़  आए  न  मालो-ज़र  आए

ज़ुल्म  की  इंतेहा  जहां  देखी 
हम  वहीं  इंक़लाब  कर  आए

इश्क़  कर  लीजिए  कि  क्यूं  नाहक़
बंदगी  का  गुनाह  सर  आए  !

                                                                                (2016)

                                                                          -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ : ख़याल:विचार; ज़र्द: पीले पड़े, मुरझाए हुए ; बर आए: साकार हुए ; गुमशुदा: खोए हुए; ज़ख़्म: घाव ; किरदार: चरित्र ; शक़ : संदेह; गर : यदि; रिज़्क़ : आजीविका, नौकरी; मालो-ज़र : धन-संपत्ति; ज़ुल्म : अन्याय, अत्याचार ; इंक़लाब : क्रांति ; नाहक़ : व्यर्थ, निरर्थक, अकारण ; बंदगी : भक्ति ; गुनाह : अपराध ।

शनिवार, 5 मार्च 2016

ज़ेरे-ख़ाक कर दे !

ज़ुबां-ए-होश  को  बेबाक  कर  दे
सितमगर ! तू  गरेबां  चाक  कर  दे

करिश्मा  यह  भी  करके  देख  ले  तू
कि   मेरी  रूह  ज़ेरे-ख़ाक  कर  दे

बग़ावत  बढ़  रही  है  नौजवां  में
सज़ा को  और  इब्रतनाक  कर  दे

ख़ुशी  को  ख़ूबतर  कर  के  बता  दे
ख़ुदी  को  और  ख़ुशपोशाक  कर  दे

कलेजा  फट  पड़ेगा  ज़ालिमों  का
लहू  को  तू  जो  आतशनाक  कर  दे

सियासत  की  सियाही  यूं  न  फैले
कि  हर  इंसान  को  चालाक  कर  दे

मेरी  आवारगी  में  वो  असर  है
कि  हर  आबो-हवा  को  पाक  कर  दे

वुज़ू  कर  के  अनलहक़  पढ़  रहे  हैं
चले  बस  तो  हमें  नापाक  कर  दे  !

                                                                      (2016)

                                                                 -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ : ज़ुबां-ए-होश : संयमित, विवेकपूर्ण भाषा; बेबाक : भय-मुक्त, शिष्टाचार के बंधन से मुक्त; सितमगर : अत्याचारी ; गरेबां : गला; चाक : चीर (ना); करिश्मा:चमत्कार; रूह : आत्मा; ज़ेरे-ख़ाक :मिट्टी के नीचे (दबाना); बग़ावत: विद्रोह की भावना; नौजवां : युवा वर्ग; इब्रतनाक : भयानक; ख़ूबतर: अधिक श्रेष्ठ; ख़ुदी : आत्म-चेतना; ख़ुशपोशाक: सुंदर वस्त्र-भूषित; ज़ालिमों: अत्याचारियों; लहू : रक्त; आतशनाक : अग्नि-वर्णी, तप्त लौह के समान; सियासत : राजनीति; सियाही : कालिमा; चालाक : चतुर; आवारगी : यायावरी ; असर : प्रभाव; आबो-हवा : पर्यावरण ; वुज़ू : देह-शुद्धि; अनलहक़ : 'अहं ब्रह्मास्मि'; नापाक : अपवित्र ।

गुरुवार, 3 मार्च 2016

दिल साफ़ करना ...

अदालत  सीख  ले  इंसाफ़  करना
गुनाहे-बेगुनाही       माफ़   करना

महारत  है  इसी  में  आपकी  क्या
किसी  के  दर्द  को  अज़्आफ़  करना

हुकूमत  जाहिलों  की  ख़ाक  जाने
अदीबों  की  तरह  दिल  साफ़  करना

तिजारत  चाहती  है  बस्तियों  का
बदल  कर  नाम  कोहे क़ाफ़  करना

हज़ारों    दोस्तों  ने    तय  किया  है
हमारे  नाम   ग़म   औक़ाफ़  करना

किसी  दिन  आइए  तो  हम सिखा  दें
नफ़स  को   ख़ुश्बुए-अत्राफ़   करना

हुनर     सीखे     हज़ारों    आपने  यूं
न  सीखा  रूह  को  शफ़्फ़ाफ़  करना !

                                                                           (2016)

                                                                     -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ : इंसाफ़ : न्याय; गुनाहे-बेगुनाही: निरपराध होने का अपराध; महारत : प्रवीणता; अज़्आफ़ : दो गुना; हुकूमत: शासन, सरकार; जाहिलों : जड़-बुद्धि व्यक्तियों ; ख़ाक : धूलि, यहां अन्यार्थ, अयोग्यता ; अदीबों : साहित्यकारों, सृजन-कर्मियों; तिजारत : व्यावसायिकता ; कोहे क़ाफ़ : काकेशिया का एक पर्वत, जहां का सौंदर्य स्वर्ग-समान माना जाता है; ग़म : दुःख, पीड़ाएं ; औक़ाफ़ : सार्वजनिक उद्देश्य हेतु दान करना ; नफ़स : श्वांस ; ख़ुश्बुए-अत्राफ़ : हर दिशा में फैल जाने वाली सुगंध; हुनर : कौशल ; रूह : आत्मा, मन ; शफ़्फ़ाफ़: निर्मल।

मंगलवार, 1 मार्च 2016

जिसका मेयार अर्श...

पत्ते  बिखर  रहे  हैं  हवा  के  फ़ितूर  में
ख़ामोश  है  दरख़्त  अना  के  सुरूर  में

रिश्ते  निबाहने  का  सही  वक़्त  है  यही
मौसम  निकल  न  जाए  कहीं  पास-दूर  में

बेहतर  है  कोई  और  नगीना  तराशिए
अब  वो:  चमक  कहां  है  मियां ! कोहेनूर  में

पर्दे  पड़े  हैं  शैख़ो-बरहमन  की  अक़्ल  पर
कंकड़  गिरा  रहे  हैं  मेरे  नोशो-ख़ूर  में

तेरा  निज़ाम  है  तो  चढ़ा  दे  सलीब  पर
लेकिन ये:  साफ़  कर  कि  भला  किस  क़ुसूर  में

दर्या-ए-दिल  को  ज़र्फ़े-समंदर  दिखा  ज़रा
नाहक़  उछल  रहा  है  ख़ुदी  के  ग़ुरूर  में

जिसका  मेयार  अर्श  बताया  गया  हमें
सज्दागुज़ार  है  वो:  हमारे  हुज़ूर  में  !

                                                                                                 (2016)

                                                                                         -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ: फ़ितूर: उपद्रव; दरख़्त :वृक्ष; अना:अहंकार; सुरूर : मद; नगीना : रत्न ; तराशिए : काट-छांट करके आकार दीजिए; कोहेनूर : विश्व-प्रसिद्ध हीरा, 'प्रकाश-पर्वत'; पर्दे:आवरण; शैख़ो-बरहमन: मौलवी एवं ब्राह्मण; अक़्ल : बुद्धि, विवेक; नोशो-ख़ूर : पीने-खाने के पदार्थ; निज़ाम: राज, सरकार; सलीब : सूली; क़ुसूर: अपराध; दर्या-ए-दिल : हृदय-नद; ज़र्फ़े-समंदर : समुद्र का गांभीर्य, धैर्य; नाहक़ : निरर्थक, अनुचित रूप से; ख़ुदी : अस्तित्व-बोध; ग़ुरूर : अभिमान; मेयार: स्तर, उच्च-स्तर; अर्श : आकाश; सज्दागुज़ार : दंडवत प्रणाम की मुद्र में; हुज़ूर : दरबार ।

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

रूहे-मज़्लूम का बयां...

इश्क़  था  या  कि  आज़माइश  थी
जो  भी  हो  आपकी  नवाज़िश  थी

दोस्त  थे  तुम  सितमज़रीफ़  न  थे
और  यह  भी  बड़ी  सताइश  थी

ग़ैर  दिल  के  क़रीब  आ  बैठे
आपसे  भी  यही  गुज़ारिश  थी

दुश्मनी  की  दलील  में  उनकी
दोस्ती  की  हसीन  ख़्वाहिश  थी

रूहे-मरहूम  का  बयां  लीजे
ख़ुदकुशी  थी  कि  कोई  साज़िश  थी

ले  उड़े  रोज़गार  ना-लायक़
जेब  में  ऊपरी  सिफ़ारिश  थी

ख़ुल्द  भी  बे-मज़ा  जगह  निकली
हर  गली  दर्द  की  नुमाइश  थी  !

                                                                                (2016)

                                                                         -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ:  आज़माइश : परीक्षा; नवाज़िश: देन ; सितमज़रीफ़ :हंस-हंस कर अत्याचार करने वाला; सताइश :प्रशंसा की बात; ग़ैर :अन्य, पराए; गुज़ारिश : निवेदन, प्रार्थना, अनुरोध; दलील :तर्क; हसीन :सुंदर; ख़्वाहिश :अभिलाषा; रूहे-मरहूम : मृतक की आत्मा; बयां :प्रतिवेदन; ख़ुदकुशी :आत्म-हत्या; साज़िश :षड्यंत्र; रोज़गार :आजीविका; ना-लायक़ :अपात्र, अयोग्य; सिफ़ारिश: अनुशंसा; ख़ुल्द :स्वर्ग; बे-मज़ा:आनंद-रहित; नुमाइश :प्रदर्शन।

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

उन्स के क़िस्से ...

ज़माने  ने  बहुत  दिन  आपका  हुड़दंग  देखा  है
मगर  क्या  आपने  दम  भर  हमारा  रंग  देखा  है

हमारी  तेग़  टूटी  है  न  दे  इस  बात  पर  ताना
तेरी  सरकार  के  फ़ौलाद  ने  भी  ज़ंग  देखा  है

बड़ा  कमज़ोर   पाया  है  कभी  भी  टूट  जाएगा
हिला  कर  ख़ूब  हमने  आपका  औरंग  देखा  है

निगाहों  के  हज़ारों  ख़ूबसूरत  रंग  होते  हैं
पलट  कर  आपने  दिल  का  कभी  फ़रहंग  देखा  है

कहां  तक  लोग  भूलेंगे  हमारे  उन्स  के  क़िस्से
अज़ल  से  आपको  सबने  हमारे  संग  देखा  है

हमारी  दावतों  में  सिर्फ़  अह् ले  नूर  आते  हैं
अंधेरों  ने  हमारा  हाथ  हरदम  तंग  देखा  है

बहुत  है,  आपका  इस  दौर  में  भी  होश  क़ायम  है
नए  हालात  पर  हमने  ख़ुदा  को  दंग  देखा  है  !

                                                                                                 (2016)

                                                                                            -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: ज़माने: संसार;दम : क्षण, पल; रंग : तेज; तेग़: तलवार; फ़ौलाद : इस्पात, शक्ति; ज़ंग : मंडूर, क्षरण; पाया: पांव, आधार; औरंग : राजासन; फ़रहंग : समांतर शब्द कोश; उन्स : स्नेह, प्रेम; क़िस्से : कथाएं; अज़ल : अनादि काल; दावतों : स्नेह भोजों; अह् ले नूर: उज्ज्वल हृदय वाले; तंग: खिंचा हुआ, बंद; दौर:कालखंड; क़ायम: शेष;हालात:परिस्थितियों; दंग : चकित ।



सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

ख़ुदा बतलाए तो...

लिए  सौ  दाग़  दिल  पर  दोस्ती  में
सबक़   सीखा  न  कुछ  भी  सादगी  में

नज़रबाज़ी    चुहल      वादाख़िलाफ़ी
बहुत-से    खेल   खेले  कमसिनी  में

न  थी  दिल  में  बुराई  दुश्मनों  के
दिए  इल्ज़ाम  हम  पर  बुज़दिली  में

ज़ेहन  आज़ाद  होना  चाहता  है
लगा  है  रिज़्क़  से  रस्साकशी  में

बहर  में  नाव  काग़ज़  की  चला  कर
लिया  तूफ़ान  से  लोहा  ख़ुदी  में

दिले-दहक़ान  की  हालत  बुरी  है
कि  राहत  ढूंढता  है  ख़ुदकुशी  में

ख़ुदा  बतलाए  तो  क्या  चाहता  है
झुका  कर  सर  हमारा  बंदगी  में  !

                                                                           (2016)

                                                                      -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ : दाग़ : कलंक; सबक़ : शिक्षा, पाठ; सादगी : सीधापन; नज़रबाज़ी: आंखें लड़ाना;  चुहल : छेड़-छाड़, हास-परिहास; वादाख़िलाफ़ी : वचन तोड़ना; कमसिनी : किशोरावस्था ; इल्ज़ाम : आरोप; बुज़दिली : कायरता; ज़ेहन : मस्तिष्क, विवेक; रिज़्क़ : आजीविका, भोजन; रस्साकशी : रस्सी खींचने का खेल; बहर : समुद्र; ख़ुदी : स्वाभिमान; दिले-दहक़ान : किसान का मन; राहत : विश्रांति; ख़ुदकुशी : आत्म-घात; बंदगी: दासत्व, भक्ति ।