पत्ते बिखर रहे हैं हवा के फ़ितूर में
ख़ामोश है दरख़्त अना के सुरूर में
रिश्ते निबाहने का सही वक़्त है यही
मौसम निकल न जाए कहीं पास-दूर में
बेहतर है कोई और नगीना तराशिए
अब वो: चमक कहां है मियां ! कोहेनूर में
पर्दे पड़े हैं शैख़ो-बरहमन की अक़्ल पर
कंकड़ गिरा रहे हैं मेरे नोशो-ख़ूर में
तेरा निज़ाम है तो चढ़ा दे सलीब पर
लेकिन ये: साफ़ कर कि भला किस क़ुसूर में
दर्या-ए-दिल को ज़र्फ़े-समंदर दिखा ज़रा
नाहक़ उछल रहा है ख़ुदी के ग़ुरूर में
जिसका मेयार अर्श बताया गया हमें
सज्दागुज़ार है वो: हमारे हुज़ूर में !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़ितूर: उपद्रव; दरख़्त :वृक्ष; अना:अहंकार; सुरूर : मद; नगीना : रत्न ; तराशिए : काट-छांट करके आकार दीजिए; कोहेनूर : विश्व-प्रसिद्ध हीरा, 'प्रकाश-पर्वत'; पर्दे:आवरण; शैख़ो-बरहमन: मौलवी एवं ब्राह्मण; अक़्ल : बुद्धि, विवेक; नोशो-ख़ूर : पीने-खाने के पदार्थ; निज़ाम: राज, सरकार; सलीब : सूली; क़ुसूर: अपराध; दर्या-ए-दिल : हृदय-नद; ज़र्फ़े-समंदर : समुद्र का गांभीर्य, धैर्य; नाहक़ : निरर्थक, अनुचित रूप से; ख़ुदी : अस्तित्व-बोध; ग़ुरूर : अभिमान; मेयार: स्तर, उच्च-स्तर; अर्श : आकाश; सज्दागुज़ार : दंडवत प्रणाम की मुद्र में; हुज़ूर : दरबार ।
ख़ामोश है दरख़्त अना के सुरूर में
रिश्ते निबाहने का सही वक़्त है यही
मौसम निकल न जाए कहीं पास-दूर में
बेहतर है कोई और नगीना तराशिए
अब वो: चमक कहां है मियां ! कोहेनूर में
पर्दे पड़े हैं शैख़ो-बरहमन की अक़्ल पर
कंकड़ गिरा रहे हैं मेरे नोशो-ख़ूर में
तेरा निज़ाम है तो चढ़ा दे सलीब पर
लेकिन ये: साफ़ कर कि भला किस क़ुसूर में
दर्या-ए-दिल को ज़र्फ़े-समंदर दिखा ज़रा
नाहक़ उछल रहा है ख़ुदी के ग़ुरूर में
जिसका मेयार अर्श बताया गया हमें
सज्दागुज़ार है वो: हमारे हुज़ूर में !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़ितूर: उपद्रव; दरख़्त :वृक्ष; अना:अहंकार; सुरूर : मद; नगीना : रत्न ; तराशिए : काट-छांट करके आकार दीजिए; कोहेनूर : विश्व-प्रसिद्ध हीरा, 'प्रकाश-पर्वत'; पर्दे:आवरण; शैख़ो-बरहमन: मौलवी एवं ब्राह्मण; अक़्ल : बुद्धि, विवेक; नोशो-ख़ूर : पीने-खाने के पदार्थ; निज़ाम: राज, सरकार; सलीब : सूली; क़ुसूर: अपराध; दर्या-ए-दिल : हृदय-नद; ज़र्फ़े-समंदर : समुद्र का गांभीर्य, धैर्य; नाहक़ : निरर्थक, अनुचित रूप से; ख़ुदी : अस्तित्व-बोध; ग़ुरूर : अभिमान; मेयार: स्तर, उच्च-स्तर; अर्श : आकाश; सज्दागुज़ार : दंडवत प्रणाम की मुद्र में; हुज़ूर : दरबार ।
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