लिए सौ दाग़ दिल पर दोस्ती में
सबक़ सीखा न कुछ भी सादगी में
नज़रबाज़ी चुहल वादाख़िलाफ़ी
बहुत-से खेल खेले कमसिनी में
न थी दिल में बुराई दुश्मनों के
दिए इल्ज़ाम हम पर बुज़दिली में
ज़ेहन आज़ाद होना चाहता है
लगा है रिज़्क़ से रस्साकशी में
बहर में नाव काग़ज़ की चला कर
लिया तूफ़ान से लोहा ख़ुदी में
दिले-दहक़ान की हालत बुरी है
कि राहत ढूंढता है ख़ुदकुशी में
ख़ुदा बतलाए तो क्या चाहता है
झुका कर सर हमारा बंदगी में !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : दाग़ : कलंक; सबक़ : शिक्षा, पाठ; सादगी : सीधापन; नज़रबाज़ी: आंखें लड़ाना; चुहल : छेड़-छाड़, हास-परिहास; वादाख़िलाफ़ी : वचन तोड़ना; कमसिनी : किशोरावस्था ; इल्ज़ाम : आरोप; बुज़दिली : कायरता; ज़ेहन : मस्तिष्क, विवेक; रिज़्क़ : आजीविका, भोजन; रस्साकशी : रस्सी खींचने का खेल; बहर : समुद्र; ख़ुदी : स्वाभिमान; दिले-दहक़ान : किसान का मन; राहत : विश्रांति; ख़ुदकुशी : आत्म-घात; बंदगी: दासत्व, भक्ति ।
सबक़ सीखा न कुछ भी सादगी में
नज़रबाज़ी चुहल वादाख़िलाफ़ी
बहुत-से खेल खेले कमसिनी में
न थी दिल में बुराई दुश्मनों के
दिए इल्ज़ाम हम पर बुज़दिली में
ज़ेहन आज़ाद होना चाहता है
लगा है रिज़्क़ से रस्साकशी में
बहर में नाव काग़ज़ की चला कर
लिया तूफ़ान से लोहा ख़ुदी में
दिले-दहक़ान की हालत बुरी है
कि राहत ढूंढता है ख़ुदकुशी में
ख़ुदा बतलाए तो क्या चाहता है
झुका कर सर हमारा बंदगी में !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : दाग़ : कलंक; सबक़ : शिक्षा, पाठ; सादगी : सीधापन; नज़रबाज़ी: आंखें लड़ाना; चुहल : छेड़-छाड़, हास-परिहास; वादाख़िलाफ़ी : वचन तोड़ना; कमसिनी : किशोरावस्था ; इल्ज़ाम : आरोप; बुज़दिली : कायरता; ज़ेहन : मस्तिष्क, विवेक; रिज़्क़ : आजीविका, भोजन; रस्साकशी : रस्सी खींचने का खेल; बहर : समुद्र; ख़ुदी : स्वाभिमान; दिले-दहक़ान : किसान का मन; राहत : विश्रांति; ख़ुदकुशी : आत्म-घात; बंदगी: दासत्व, भक्ति ।
बहर में नाव काग़ज़ की चला कर
जवाब देंहटाएंलिया तूफ़ान से लोहा ख़ुदी में ...बहुत खूब लिखा है आपने। मेरे ब्लॉग पर पधारें http://manishpratapmpsy.blogspot.com